
पटना- राज्य सरकार द्वारा अनाज आधारित एथनॉल उत्पादन की अनुमति देने से राज्य में निवेश की संभावना बढ़ेगी। अभी राज्य में कार्यरत डिस्ट्रीलरीज छोआ (मोलासेस) से एथनॉल बना रही है। आने वाले दिनों में सीधे गन्ना और लोगों के उपयोग में नहीं आने वाले अनाज से एथनॉल उत्पादन करने की दिशा में कई कंपनियां आगे आएगी। कई निवेशक अनाज से एथनॉल बनाने की यूनिट लगाने के लिए आवेदन दिए हैं। केंद्र सरकार भी एथनॉल एथनॉल आधारित उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 6 फीसदी ब्याज सब्सिडी देने की योजना बनाई है। इंडियन सुगर मैन्यूफ्रैक्चरस एसोसिएशन (आईएसएमए) भी चीनी मिल को एथनॉल यूनिट लगाने के लिए प्रेरित करेगा।
राष्ट्रीय बॉयोफ्यूल नीतित्र 2018
दरअसल केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बॉयोफ्यूल नीतित्र2018 बनाकर अनाज से एथनॉल बनाने की छूट दे दी है।इस नीति के तहत मानव उपयोग में अयोग्य पाए जाने वाल खाद्यनों जैसे टूटे चावल,गेहूं और मक्का आदि से एथनॉल बनाने की अनुमति दी गई है। इस नीति के लागू होने के बाद से भी कुछ डिस्ट्रीलरीज राज्य सरकार के सामने अनाज से एथनॉल बनाने की मांग की जाने लगी थी। उसके बाद राज्य सरकार को अनाज से एथनॉल बनाने देने की अनुमति दी।
आईएसएमए एथनॉल उत्पादन को प्रेरित करेगा
इंडियन सुगर मैन्यूफ्रैक्चरस एसोसिएशन (आईएसएमए) के प्रबंध निदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि एसोसिएशन भी चीनी मिलों को एथनॉल उत्पादन के लिए प्रेरित करेगा। एथनॉल उत्पादन शुरु होने से किसानों को उनके उपज का उचित मूल्य मिलेगा। उन्होंने कहा जब गन्ना से सीधे एथनॉल का उत्पादन शुरु होगा तो आम किसान भी गन्ना उत्पादन करने को आगे आएंगे। बिहार की जलवायु और मिटी दोनों गन्ना के लिए उपयुक्त है। एथनॉल स्वच्छ ईंधन (ग्रीन फ्यूल) है। निवेशक छोआ (मोलासेस) के अलावा खाद्यान्न (आलू,मक्का इत्यादि) से भी एथनॉल बनाने की दिशा में आगे आएंगे। चावल मिल वालों को इससे सर्वाधिक फायदा होगा। चावल मिल को टूटे चावल से भी आमदनी होगी और उनका घाटा कम होगा। इधर उद्यमी दीपक ठाकुर ने आईएसएमए एमडी से मिलकर बिहार की रुग्न चीनी मिलों की दुर्दशा और उनके पुनरुद्धार के लिए रोडमैप बनाने पर एक ज्ञापन सौंपा।