आर्थिक सर्वेक्षण २०२० में इस ओर संकेत दिए गए हैं कि यदि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करना चाहती है तो उसे कृषि क्षेत्र में मूलभूत चुनौतियों का समाधान करना होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को कृषि में निवेश, जल संरक्षण, श्रेष्ठतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से पैदावार में सुधार, बाजार तक पहुंच, संस्थागत ऋण की उपलब्धता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ाना आदि जैसे विषयों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
उन्नत उपकरणों व श्रेष्ठतर कृषि पद्धतियों के प्रयोग
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भूमि और जल संसाधन एवं मजदूरों में कमी आने के चलते कृषि में उत्पादन और कटाई के बाद के कार्यों का उत्तरदायित्व मशीनीकरण पर टिकी हुई है। इसके आधार पर रिपोर्ट में सरकार से कृषि मशीनीकरण को और बढ़ाने के लिए कहा गया है।
भारत में कुल कृषि मशीनीकरण 40-45 प्रतिशत है। वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका में 95 प्रतिशत, ब्राजील में 75 प्रतिशत और चीन में 57 प्रतिशत है। इस तरह कई बड़े देशों के मुकाबले भारत में कृषि मशीनीकरण कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि मशीनीकरण मानव श्रम और कृषि की लागत को कम करने के अतिरिक्त प्राकृतिक संसाधनों और अन्य चीजों का विवेकपूर्ण उपयोग करके उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि का एक आवश्यक इनपुट है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि मशीनीकरण के उपयुक्त उपयोग के माध्यम से भारत की छोटी जोतों का श्रेष्ठतर उपयोग किया जा सकता है।
प्रयाप्त बिजली की उपलब्धता
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार कृषि बिजली और उत्पादन का सीधा संबंध है। सरकार ने खाद्यान्न की बढ़ती मांग से निपटने के लिए 2030 के अंत तक 2.02 किलोवाट प्रति हेक्टेयर से 4.0 किलोवाट प्रति हेक्टेयर तक बिजली की उपलब्धता बढ़ाने का निर्णय किया है।
जल संरक्षण व सिंचाई सुविधाओं के विस्तार
इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि एक प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है। इसके लिए सूक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरिगेशन), जिसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर इरिगेशन सम्मिलित हैं, की तकनीक अपनाने को कहा गया है।
इस तकनीक को चावल, गेहूं, प्याज, आलू इत्यादि के उत्पादन में अच्छे से प्रयोग किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार सूक्ष्म सिंचाई से 20 से 48 फीसदी जल की बचत होती है। इसके अतिरिक्त 3 से 40 फीसदी श्रम लागत और 11 से 19 फीसदी उर्वरक में बचत होती है। करीब 20 से 38 फीसदी उत्पादन में वृद्धि होती है।
संस्थागत कृषि ऋण की उपलब्धता
सर्वेक्षण से यह बात भी सामने आई है कि कृषि ऋण के बंटवारे में बड़ी असमानता देखी जा रही है। उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी राज्यों को कुल ऋण का एक फीसदी से भी कम ऋण मिला है। सर्वाधिक व सहज कृषि ऋण दक्षिणी भारत के राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में गए हैं।