
पटना – कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने कहा है कि सूबे की 77 फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है। लिहाजा राज्य सरकार कृषि सेक्टर के विकास के साथ किसानों की स्थिति सुधारने की कार्ययोजना पर गंभीरता से काम कर रहा है। अब इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। मंत्री सेंटर फॉर एन्वॉयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट(सीड) द्वारा कृषि, बिजली और जल के परस्पर संबंधों पर आयोजित एक नेशनल कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सौर उर्जा कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जल और ऊर्जा के सामंजस्यपूर्ण संबंधों से राज्य के कृषि क्षेत्र ने बेहद प्रभावी वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की है। यह बिहार की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधारस्तंभ बना हुआ है। अकेले कृषि क्षेत्र बिहार के सकल घरेलू उत्पाद- जीडीपी में 18-19 प्रतिशत का योगदान करता है।
सीड के सीईओ रमापति कुमार ने कहा कि वर्तमान कृषि संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर समस्या है। अप्रत्याशित रूप से बदलते मौसम चक्र और जल आपूर्ति के खत्म होते जाने से समस्या और विकट हो गई है। इन समस्याओं ने किसानों को खेतीबाड़ी का काम छोड़ने के लिए विवश कर दिया है, जो बड़े पैमाने पर खाद्यान्न उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। सरकार को उचित योजना बना कर उस पर गंभीरता से काम करना चाहिए। सौर ऊर्जा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो किसानों की आय को दोगुनी करने में सक्षम है।
बिहार इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन के सदस्य राजीव अमित ने कहा कि बिहार में भूजल आधारित सिंचाई की खाद्य सुरक्षा और कृषि आधारित जीविकोपार्जन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि क्षेत्र और खाद्यान्न उत्पादन में बिजली की सप्लाई को एकीकृत नजरिए से पूरा करने की जरूरत है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति के सभी पहलुओं को समाहित किया जा सके।
नेशनल कॉन्फ्रेंस का निष्कर्ष:
सीड द्वारा कृषि, बिजली और जल के परस्पर संबंधों पर आयोजित एक नेशनल कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों की सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष सामने आया कि सौर ऊर्जा न केवल बिजली घाटे की समस्या का हल कर सकती है, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
क्या परेशानी है:
अनियमित और अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति की वजह से सिंचाई की उचित व्यवस्था तथा समुचित संख्या में कोल्ड स्टोरेज के अभाव के कारण विकास की राह में बाधाएं पैदा हो रही हैं। सिंचाई की कम व्यवस्था, एक फसलीय पद्धति और उत्पादन-पश्चात खराब इंफ्रास्ट्रक्चर किसानों की आय को सीधे प्रभावित करते हैं और उन्हें ऋण जाल में फंसा देते हैं।