
पटना (मधुरेश) – लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी), अपने आखिरी दिनों में भी एक और क्रांति की इच्छा रखते थे। असल में, चौहत्तर आंदोलन से कांग्रेसी राज तो बदल गया। मगर राजपाट के लिए अपनों की मारामारी देख बहुत क्षुब्ध रहे। फिर, उनको इस आंदोलन का असली मकसद-’संपूर्ण क्रांति’, इसके बहुपक्षीय आयाम, शायद ही किसी स्तर पर पूरे होते दिखे। डॉ. सीपी ठाकुर ने भी कहा-’एक दिन जेपी, त्रिपुरारि शरण से बतिया रहे थे। उनसे पूछ रहे थे-त्रिपुरारि, क्या हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक और आंदोलन/क्रांति नहीं कर सकते हैं?’
कन्फ्यूजन में जेपी को 23 मार्च को श्रद्धांजलि दे दी गई थी- डॉ. सीपी ठाकुर
जेपी, 8 अक्टूबर 1979 को नहीं रहे। सबने मुझसे कहा-आप लिखकर दीजिए, तभी मृत्यु की घोषणा होगी। यही हुआ। दरअसल, करीब छह महीना पहले उनकी मृत्यु का कन्फ्यूजन हुआ था। 23 मार्च को आकाशवाणी ने मृत्यु की खबर दी। संसद में उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद कार्यवाही स्थगित हुई। सरकार की खूब भद्द पिटी। इसलिए 8 अक्टूबर को जब वाकई जेपी नहीं रहे, तो कोई भी 23 मार्च वाली गलती दोहराना नहीं चाहता था। खैर, मैंने उनकी पूरी बॉडी चेक की। छाती दबाकर सांस चलाने की कोशिश हुई। सबकुछ नाकामयाब। चार बजे सुबह में उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने की खबर आई थी। जाकर देखा, पल्स नहीं था। शायद हृदयगति रूक गई थी। मैंने कहा-घर से आता हूं। तब फाइनल बात कहूंगा। उनकी मृत्यु की खबर लीक हो गई। भीड़ बढ़ने लगी। जब आया, तो फाइनली उनकी मृत्यु की बात लिखी। घोषणा हुई। मैंने देखा जेपी के हाथ में घड़ी नहीं थी। भीड़ से जेपी आवास (चरखा समिति, कदमकुआं, पटना) की एक तरफ की दीवार टूट गई। मैंने डीएम, एसपी को फोन किया। दोनों तुरंत आए। पार्थिव शरीर को श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में रखने पर सहमति बनी। जेपी और उनके कुछ करीबी लोगों को संदेह था कि उनको मारने की साजिश हुई, इसका तरीका ऐसा रखा गया कि बिल्कुल शक न हो, सबकुछ स्वाभाविक लगे। लेकिन मैंने यह बात कभी नहीं मानी। एकाध मौके पर जब ऐसी बात आई भी, तो मैंने जेपी से यही कहा कि कोई डॉक्टर अपने मरीज और वह भी आपके साथ ऐसा कर ही नहीं सकता। अंततः ये लाइनें खारिज हुईं। जेपी, सक्रिय राजनीति से अलग हो पटना में रहने लगे थे। उनके मित्र परमानंद सहाय ने मुझसे कहा-उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। कोई नियमित तौर पर देखने वाला नहीं। मैं तैयार हो गया। एक बार उनको देखने उनके गांव सिताबदियारा जाना था। छपरा तक गाड़ी से गया। उसके बाद हाथी पर बैठकर। वापसी भी बिना हौदा वाले हाथी से। ईसीजी मशीन, दूसरा डॉक्टरी सामान एक आदमी पैदल लेकर चल रहा था। स्टीमर से पटना वापसी में नींद आ गई। मेरी मशीन, बैग चोरी हो गया। जनता पार्टी की सरकार बनने पर शायद कुछ लोगों को जेपी के यहां मेरी मौजूदगी पसंद नहीं थी। मैंने जाना छोड़ दिया। जेपी ने मुझे बुलवाया। कहा-मैंने आपके नहीं आने कारण जानता हूं। लेकिन आप मेरे डॉक्टर हैं, आना ही पड़ेगा। एक दिन प्रभावती जी (जेपी की पत्नी) रिक्शा से मेरे अस्पताल पीएमसीएच आ गईं। सब चौंके। मैंने उनको मना किया। वह कैंसर से मरीं। हमें उनके कैंसर होने की बात बहुत बाद में पता चली। वरना हम उनका भी इलाज कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते। एक बार शेख अब्दुल्ला जेपी से मिलने आए। बहुत सारा फल, मेवा लाए थे। मैं घर लौटा तो देखा कि इसका बड़ा हिस्सा मेरे घर में है। इसे जेपी ने भिजवाया था। उनसे बहुत बातें होती थीं। हर मसले पर। लेकिन सब सिद्धांत, आदर्श, मुद्दा पर आधारित। उनसे किसी की पर्सनल आलोचना कभी नहीं सुनी। इंदिरा गांधी से उनका पुरजोर राजनीतिक विरोध था मगर वह उनको अपनी बेटी मानते थे।
मुंबई में डायलिसिस में 4 घंटे लगते थे- डॉ.इंदुभूषण सिन्हा
डायलिसिस में चार, साढ़े चार घंटे लगते थे। जेपी, तीन घंटे में ही मशीन को हटाने की जिद करने लगते थे। असल में बहुत तकलीफ होती थी। आगे स्थिति और बिगड़ी, तो एक दिन बीच करके डायलिसिस होने लगी। यह जसलोक हॉस्पिटल (मुंबई) में होता था। कुछ दिन बाद जेपी ने मुझसे कहा-पटना ले चलिए। अपने जगह पर ज्यादा ठीक रहेगा। मैंने डॉ. मणि से बात की। उन्होंने इजाजत दी। जेपी के साथ एक डायलिसिस मशीन भी पटना आई। कुछ दिन बाद खराब हो गई। तब पीएमसीएच में डायलिसिस की दो मशीन थी। एक तुरंत जेपी के घर पर लाई गई। अस्पताल में दूसरे मरीजों को दिक्कत न हो, इसलिए आठ-दस दिन में अस्पताल में एक मशीन खरीद ली गई। जेपी, फेस्चुला बनवाने अमेरिका गए। सरकार ने मुझे उनके साथ जोड़ा था। मैं लगातार उनके साथ रहा। मुंबई से लेकर पटना तक। हमने डॉक्टर और मरीज के आदर्श संबंधों से बहुत आगे की स्थितियों को जिया। मेरा सौभाग्य था कि मुझे जेपी जैसी थाती को संभालने, उनको स्वस्थ-दुरुस्त रखने का मौका मिला था। मैंने इसे पूर्व जन्म के पुण्य का परिणाम माना। मेरी छुट्टी कैंसिल कर दी गई। बहुत ही जरूरी होने पर मुझे छुट्टी लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग के सचिव को आवेदन देना पड़ता था। जेपी को पोस्ट्रेट का प्रॉब्लम था। शायद इसी कारण उनको किडनी का प्रॉब्लम हुआ होगा। हालांकि, पोस्ट्रेट का इलाज हुआ था। एज फैक्टर था। डल हो गए थे। उनमें बहुत अलर्टनेस नहीं था। बड़ी संख्या में बड़े-बड़े लोग लगातार आते रहते थे। मैंने मिलने-जुलने का बाकायदा समय तय कराया। कोशिश यही की कि जेपी ज्यादा डिस्टर्ब नहीं हों। मुंबई में वह रामनाथ गोयनका के पेंट हाउस में रहते थे। वहीं से हॉस्पिटल की आवाजाही। बाद में हॉस्पिटल में ही रहे। बहुत ही सामान्य स्वभाव। निर्लिप्त। कोई ईगो नहीं। किसी के प्रति आग्रह-पूर्वाग्रह, राग-द्वेष नहीं। उनको मारने की साजिश की बात गलत है। उनका इलाज, अल्टीमेट था।
जेपी का मन (उनकी कुछ पंक्तियां)
जीवन विफलताओं से भरा है
सफलताएं जब कभी आईं निकट
दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से ।
तो क्या वह मूर्खता थी? नहीं।
सफलता और विफलता की
परिभाषाएं भिन्न हैं मेरी!
इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
बन नहीं सकता प्रधानमंत्री क्या?
किंतु मुझ क्रांतिशोधक के लिए
कुछ अन्य ही पथ मान्य थे
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
पथ संघर्ष के, संपूर्ण क्रांति के ….।