
25 अक्टूबर से पांच दिवसीय दीपोत्सव शुरू हो रहा है। ये उत्सव 29 अक्टूबर तक चलेगा। इन पांच दिनों में गणेशजी, देवी लक्ष्मी और कुबेरदेव के साथ ही यमराज की भी विशेष पूजा करने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस साल 25 को धनतेरस, 26 को नरक चतुर्दशी, 27 की सुबह चतुर्दशी और शाम को अमावस्या तिथि रहेगी। 27 अक्टूबर की रात ही लक्ष्मी पूजा होगी। 28 अक्टूबर की सुबह अमावस्या तिथि रहेगी, इस कारण 28 को पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाएगा। 28 को ही गोवर्धन पूजा भी होगी। 29 को भाई दूज रहेगी।
दीपावली पर यमराज पूजा की परंपरा
- धनतेरस पर घर की दक्षिण दिशा में यमराज और पितरों के लिए दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद नरक चतुर्दशी पर भी यमराज के लिए पूजा-पाठ करना चाहिए। दीपावली यानी कार्तिक अमावस्या तिथि के स्वामी भी पितर देवता और यमराज होते हैं। इस दिन चंद्र के दर्शन नहीं होते। चंद्र लोक ही पितरों का निवास स्थान माना गया है। आश्विन माह के श्राद्ध पक्ष में आए हुए समस्त पितर कार्तिक अमावस्या पर ही धरती से विदा लेते हैं और अपने चंद्र लोक जाते हैं। इस दिन अंधकार होता है, पितरों को मार्ग में रोशनी मिले, इसी भाव से दिवाली की रात पितरों के लिए दीपक जलाने की परंपरा है।
- धनतेरस की शाम एक बर्तन में अन्न भरें और उस पर दीपक रखकर जलाएं। ये दीपक घर की दक्षिण दिशा में रखें। दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज हैं और ये दिशा पितरों की मानी गई है। दीपक लगाते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
- मान्यता है कि रूप चौदस यानी नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा करने से अनजाना भय दूर होता है। दीपावली पर पितरों का और यमराज का पूजन करके पितरों के लिए शांति एवं प्रसन्नता की कामना की जाती है। अमावस्या के बाद अगले दिन गोवर्धन पर्वत का पूजन होता है।
- दीपोत्सव के अंतिम दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। इसी वजह से यह दिन भाई दूज के रूम में मनाया जाता है। इस दिन भी यमराज और यमुना का पूजन करना चाहिए।