माता और पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए रोजमर्रा से जुड़ी वस्तुओं के विषय में सूचना दे सकते हैं, साथ ही कुछ नई तरकीबें भी निकाल सकते हैं।
प्रायः देखने में आता है कि बच्चों को खाने की वस्तुओं के नाम ही पता नहीं होते। विशेषत: दालों के नामों की बात आते ही वे समझ ही नहीं पाते कि वे कौन-सी दाल खा रहे हैं। वे सिर्फ़ उन्हें रंगों से जानते हैं। इसलिए अभी जब समय है और कुछ मनोरंजक करना है तो पृथक कटोरी में दाल रखकर उन्हें उनके नाम बताएं। उन्हें पहचान कराएं और उनसे पूछें भी। नाम पहचान करने को खेल की तरह भी खेल सकते हैं। सही नाम बताने पर पुरस्कार के रूप से बच्चों को मनपसंद नाश्ता बनाकर दे सकते हैं।
याद कीजिए बचपन में पावभर सामान मंगाने पर दिमाग़ में आता था कि पावभर कितना होता है। फिर जाना कि 250 ग्राम को पावभर कहा जाता है। यह प्रश्न बच्चों के मन में प्रायः आते हैं। इसलिए उन्हें यह सूचना देना आवश्यक है। इसी के साथ टी स्पून, टेबल स्पून, 1/4 कप क्या और कितना होता है यह भी बताएं। यह सब जानना उनके लिए रोचक होगा।
बच्चे प्रायः जूते के फीते और टाई बांधने के लिए माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। सहायता की आदत उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनने देती। अब जब वक़्त है तो उन्हें यह कार्य स्वयं करने के लिए कहें। पहले उन्हें सिखाएं और बाद में उनसे बंधवाकर देखें। इससे जब दिनचर्या सामान्य होगी तो आपके हिस्से के कुछ कार्य कम होंगे और बच्चे भी अपना कार्य स्वयं करना सीखेंगे।
बच्चों के पोशाक तह करना उन्हें अलमारी में जमाकर रखने जैसे कार्यों से अब मुक्त हो जाइए। यह कार्य बच्चों के हवाले कर दें। पहले उन्हें बताएं कि किस पोशाक को कैसे तह करना है उसके बाद जब वह अच्छी तरह से तह करना सीख जाएं तो उन्हें अलमारी में जमाना सिखाएं। उन्हें उनकी विद्यालय यूनीफॉर्म को इस्त्री करना भी सिखा सकते हैं।
बच्चों को संवेदनशील बनाना और प्रकृति को क़रीब से जानने का मौक़ा देना चाहते हैं तो उन्हें बाग़वानी सिखाएं। उन्हें गुड़ाई करते वक़्त साथ रखें, पौधों को जल कितना देना चाहिए, किस समय देना चाहिए। इस सबकी सूचना दें। इससे बच्चे पौधों की देखभाल के प्रति उत्तरदायी बनेंगे। बच्चों को घर की डस्टिंग का उत्तरदायित्व भी दे सकते हैं।
बच्चों को दोपहर में सोने की आदत नहीं होती। ऐसे में घर के बड़े जैसे नाना-नानी, दादा-दादी दोपहर के वक़्त उन्हें कहानियां सुना सकते हैं। इसके अतिरिक्त अपने अनुभव बता सकते हैं। इससे बच्चे जीवन के मूल्य और बड़ों के संघर्ष को जान सकेंगे।