
पटना – भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने ब्लॉग लिखकर धारा 370 खत्म करने वालों को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि जनता जहां मोदी सरकार के इस साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय की दिल खोल करते नहीं थक रही है, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इससे लोकतंत्र पर हमला, तानाशाही और न जाने क्या क्या बताते हुए इस निर्णय के विरोध में देश से विदेश तक अपनी छाती कूट रहे हैं। दरअसल फाइव स्टारी संस्कृति में पले-बढ़े इन खाए-पिए और अघाए तबके को भूरे अंग्रेजों की उपाधि दे दी जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।
डॉ. जायसवाल ने कहा कि 2014 से पहले सत्ता के गलियारों में इनकी तूती बोलती थी। पर, इसके बाद परिस्थितियों में बदलाव आया। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र प्रथम की अवधारणा में विश्वास करने वाली सरकार आयी। इसका आना इनके लिए किसी आघात से कम नहीं था। इन्हें इसकी बेचैनी हो गयी कि आखिर कैसे एक कुलीन और शाही खानदान के युवराज को छोड़, लोगों ने एक गरीब और अतिपिछड़े परिवार के चाय बेचने वाले को दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत का सिरमौर बना दिया। तब इन्होंने देश में असहिष्णुता का एक नया राग छेड़ा, लोकतंत्र को खतरे में बताया, नोटबंदी पर विधवा विलाप करते हुए अपनी छाती कुटी। दुर्भाग्य से जनता इनका खेल समझ चुकी थी, इसीलिए 2019 में पहले से भी बड़े बहुमत के साथ मोदी सरकार को दुबारा सदन में भेजा।
अब मोदी टू में इस गिरोह की नींदें हराम है। धारा 370 हटने के बाद इन लोगों की बौखलाहट इनके बयानों से साफ दिखाई देती है। यह बताते हैं कि बिना कश्मीर के लोगों से पूछे हुए केंद्र सरकार ने धारा 370 हटा कर वहां के निवासियों के साथ ज्यादती की है। लेकिन यह पूछने पर कि क्या वहां यह धारा देश के लोगों से पूछकर लगायी गयी थी, पूछने वाले को फासीवादी बता देते हैं। यह पूछने पर कि जब कश्मीर में देश के बाहर से, अवैध रूप से रोहिंग्या आ कर बस सकते हैं तो फिर वहां के मूल निवासी व विस्थापितों की जिंदगी जीने वाले कश्मीरी पंडित क्यों नही, इनका हाजमा खराब होने लगता है। फिर ये आपको अल्पसंख्यक विरोधी, भगवा आतंकी और न जाने क्या क्या बताने लगते हैं। यहां तक कि खुद को दलितों के सबसे बड़े हमदर्द बताने वाले इन लोगों का खून इस धारा की वजह से कश्मीर में रहने वाले दलितों-पिछड़ों को आरक्षण नहीं मिलने की बात पर भी नहीं खौलता।