
अयोध्या भूमि विवाद मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में 15वें दिन सुनवाई हुई। राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने पांच सदस्यीय बेंच के सामने दलीलें पेश कीं। उन्होंने किताबों को सबूत के तौर पर स्वीकार करने संबंधी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र किया। मिश्रा ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये साबित नहीं हो पाया है कि विवादित जमीन पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था या औरंगजेब ने?
- समिति के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, एक जज ने लिखा था कि इसका कोई सबूत नहीं मिला है कि ढांचे का निर्माण बाबर ने कराया था। जबकि दूसरे जज ने कहा था कि इसे औरंगजेब ने बनवाया था। लेकिन मुस्लिम पक्षकार साबित नहीं कर पाए कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया था।
- ऐसे में मेरा कहना है कि जब कोई सबूत ही नहीं है तो मुस्लिम पक्षकार को विवादित जमीन पर कब्जा या हिस्सेदारी नहीं दी जा सकती। बाबर ने मस्जिद का निर्माण नहीं कराया था और न ही वह विवादित जमीन का मालिक था। जब वह जमीन का मालिक ही नहीं था तो सुन्नी वक्फ बोर्ड का मामले में दावा ही नहीं बनता।
- मिश्रा ने कहा कि हाईकोर्ट के जज एसयू खान का निष्कर्ष अनुमान पर आधारित था। उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि इस बाबत सबूत नहीं है कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने किया था, लेकिन मैं ये अनुमान लगा सकता हूं कि ये मस्जिद बाबर ने बनवाई थी। यह तो स्पष्ट है कि मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया था, क्योंकि मंदिर के अवशेष उस जगह से मिले हैं। जबकी कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर को ध्वस्त कर के मस्जिद बनाई गई।
जस्टिस बोबड़े ने मिश्रा से तीन बिंदु स्पष्ट करने को कहा
1. क्या वहां एक स्ट्रक्चर था?
2. क्या स्ट्रक्चर मस्जिद है या नहीं?
3. वह स्ट्रक्चर हिंदुओं को समर्पित था?
पिछली सुनवाई में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई। मंगलवार को 13वीं सुनवाई में निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने दलील दी कि विवादित ढांचे में मुस्लिमों ने 1934 के बाद से कभी नमाज नहीं पढ़ी। मुस्लिम पक्ष ने स्वीकार किया कि 1855 से पहले वहां नमाज पढ़े जाने का साक्ष्य नहीं है। बुधवार को 14वीं सुनवाई में राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा- अयोध्या में मंदिर बाबर ने नहीं, बल्कि औरंगजेब ने तुड़वाया था। अपने दावे को साबित करने के लिए समिति ने प्राचीन मुस्लिम किताबें सबूत के तौर पर पेश कीं। हालांकि, एक किताब पर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति भी जताई।
हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला विराजमान।