
केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में अपना उत्तर दायर कर दिया है। अपने उत्तर में केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि यह कानून किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और इससे संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन होने का कोई प्रश्न नहीं उठता है। नागरिकता संशोधन कानून केंद्र को मनमानी शक्तियां नहीं देता, नागरिकता इस कानून के अंतर्गत निर्देशित तरीकों से दी जाएगी। बता दें कि इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में अब तक 160 से अधिक याचिकायें दायर की जा चुकी हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने सोमवार को नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। राजस्थान सरकार ने कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत और संविधान में प्रदत्त समता और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। केरल के बाद राजस्थान दूसरा राज्य है जिसने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लियह संविधान के अनुच्छेद 131 का सहारा लेकर शीर्ष न्यायालय में वाद दायर किया है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत केन्द्र से विवाद होने की स्थिति में राज्य सीधे शीर्ष न्यायालय में मामला दायर कर सकता है।
राज्य सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को संविधान के प्रावधानों के इतर और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया है। नागरिकता संशोधन कानून, 2019 में प्रावधान है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।
याचिका में कहा गया है कि संशोधित पासपोर्ट नियमावली और विदेशी आदेश ‘वर्ग कानून है जो व्यक्ति की धार्मिक पहचान पर आधारित है, जिससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। इसे न्यायालय ने संविधान का बुनियादी ढांचा माना है। इससे पहले, माकपा नीत केरल सरकार उच्चतम न्यायालय में नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली पहली राज्य सरकार बन गई थी। केरल विधानसभा ने ही सबसे पहले इस अधिनियम के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया था।