बेंगलुरु से 500 किमी दूर धारवाड़ जिले का लोकुर गांव। यहां का भीमन्ना नरसिंगवर परिवार देश के सबसे बड़े संयुक्त परिवारों में शुमार है। परिवार के 140 सदस्य एक साथ हैं। इसमें 80 पुरुष और 60 महिलाएं हैं। 18 वर्ष तक की आयु के 30 लोग हैं।
हम जब यहां पहुंचे तो घर के आंगन में सात-आठ चूल्हों पर नहाने के लिए जल गर्म हो रहा था। एक कमरे से आटा चक्की चलने की आवाज आ रही थी। पूछने पर परिवार के सदस्य मंजूनाथ ने बताया कि दाल, बेसन, मैदा और ज्वार पीसने के लिए परिवार के पास स्वयं की दो चक्की है। यहां रोज पिसाई होती है। रोज सबका खाना एक साथ बनता है, वह भी तीन बार। एक बार में कम से कम 300 ज्वार की रोटियां बनती हैं।
40 गायें हैं, जिनसे प्रत्येक दिन 150 लीटर दूध होता है। 60 लीटर घर में ही लग जाता है। परिवार के पास 200 एकड़ भूमि है। 90 वर्ष के ईश्वरप्पा बताते हैं कि सात पीढ़ी पहले हमारे पुरखे महाराष्ट्र के हटकल अन्गदा से यहां आए थे। तब से कोई बंटवारा नहीं हुआ। इस बीच कई मुसीबतें आई और गईं। पर परिवार साथ रहा। 1998 से छह वर्ष सूखा रहा। कर्ज लेना पड़ा, जो बढ़ते-बढ़ते अब 4 करोड़ रु। का हो गया है।
हमने मिलकर रास्ता निकाल लिया है। हम 15 एकड़ भूमि बेचेंगे। यहां 20 से 25 लाख रुपए एकड़ भूमि है। खेती का कार्य देखने वाले देवेंद्र बताते हैं कि रोज दस से अधिक खेतों पर 50 मजदूर कार्य करते हैं। छोटे-मोटे व्यय पता नहीं चलते हैं लेकिन बड़े व्यय खूब होते हैं। हर वर्ष परिवार में दो-तीन शादियां होती हैं। एक शादी पर औसतन 10 लाख रुपए व्यय होते हैं।
पढ़ाई पर भी खूब व्यय होता है। परिवार की बहू अकम्मा गर्व से कहती हैं कि हमारे परिवार में कभी कोई मृत्यु 80 वर्ष से कम आयु में नहीं हुई। हर वर्ष मुंबई, बेंगलुरु, हुबली से 15 से 20 विद्यार्थी परिवार पर रिसर्च करने आते हैं। निर्देशक केतन मेहता फिल्म भी बना चुके हैं।
- बढ़ती आवश्यकता के कारण से परिवार के 6 घर हैं। पूरे घर का खाना 1975 में बने सबसे पुराने घर की रसोई में ही बनता है।
- – 30 बच्चों की पढ़ाई मंजूनाथ देखते हैं, जो 20 किमी दूर रहते हैं। रसोई 75 वर्ष की कस्तूरी संभालती हैं। बहुएं-बेटियां सहायता करती हैं। देवेंद्र कृषि-मशीनों का कार्य देखते हैं। महिला मजदूरों को पद्मप्पा और पुरुष मजदूरों को धर्मेंद्र देखते हैं।
- शिकायतें परिवार साथ बैठकर निपटाता है। अंतिम निर्णय 90 वर्ष के ईश्वरप्पा का होता है। इनकी बात कोई नहीं काटता।
- परिवार की सबसे बड़ी खूबी सादगी है। बचपन से ही बच्चों को सिखाया जाता है कि कम संसाधन में भी जिया जा सकता है और हर मुसीबत का हल खोजा जाता है।
- नौकरियों के कारण से बाहर रह रहे परिवार के अन्य 70 सदस्य दशहरे पर गांव अवश्य आते हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि बाहर रह रहा कोई सदस्य गमी में आ नहीं पाया हो।
- पूरे परिवार में सिर्फ 2 टीवी हैं। बच्चों को कभी टीवी की आवश्यकता महसूस नहीं होती। मोबाइल और टीवी से बच्चों को दूर भी रखा जाता है।