शनिवार, 18 अप्रैल को वैशाख मास के कृष्णपक्ष की एकादशी है, इसे वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से प्रत्येक तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा भी की जाती है। वरुथिनी एकादशी व्रत करने सेकठिन तपस्या के बराबर फल मिलता है और पुण्य में बढ़ोतरी होती है।
- वरुथिनी एकादशी पर प्रातः शीघ्र उठना चाहिए।
- स्नान के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत करने का संकल्प लें, पूजा करें।
- पूरे दिन निराहार नहीं रह सकते हैं तो फलाहार कर सकते हैं।
- इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की भी विशेष पूजा करनी चाहिए।
- भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें और विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
- पूजा के बाद व्रत की कथा सुननी चाहिए। व्रत के अगले दिन अर्थात द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। उसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से सभी दानों में श्रेष्ठ अन्न दान और कन्या दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अनेकों वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत को रखने से अश्वमेघ यज्ञ का फल भी प्राप्त होता है। जो भी व्यक्ति यह व्रत रखता है उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है और मरने के बाद बैकुंठधाम में स्थान मिलता है।
- व्रत करने वाले को इस दिन चावल और उससे बनी वस्तुएं नहीं खाना चाहिए।
- मांसाहार, मसूर की दाल, चने और शहद का सेवन नहीं करना चाहिए।
- इस एकादशी को पान नहीं खाना चाहिए।
- इस दिन किसी भी तरह का अनुचित कार्य नहीं करना चाहिए।
- झूठ न बोलें और दूसरों की निंदा न करें। अधर्मी लोगों की संगत से भी बचना चाहिए।
- रात को जागरण करना चाहिए और भगवान के भजन गाकर भक्ति करनी चाहिए।