2019 के लाेकसभा चुनाव में 4 प्रमुख राष्ट्रीय दलों ने धनबल का जमकर प्रयोग किया। सबसे अधिक 1264 करोड़ रु। भाजपा ने व्यय किए। पार्टी 303 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इस लिहाज से भाजपा को हर जीती हुई सीट करीब 4.17 करोड़ रुपए में पड़ी। 7 राष्ट्रीय दलों की ओर से चुनाव आयोग को सौंपे गए व्यय के ब्याेरे के विश्लेषण से यह खुलासा हुआ।
व्यय के मामले में कांग्रेस भी अधिक पीछे नहीं है। 421 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ी कांग्रेस ने 820 कराेड़ रु। व्यय किए थे, लेकिन इसके 52 उम्मीदवार ही जीत पाए। इस लिहाज से कांग्रेस को हर जीती हुई सीट 15.79 करोड़ में पड़ी। दलों को 31 अक्टूबर तक अपने चुनाव व्यय का ब्याेरा आयोग को देना था। कांग्रेस ने 42 दिन की विलम्ब से 12 दिसंबर, जबकि भाजपा ने 27 दिन विलम्ब से 27 नवंबर को अपना हिसाब दिया।
पार्टियों के व्यय में स्टार प्रचारकों और अन्य नेताओं के दौरों, रैलियों और विज्ञापनों समेत अन्य प्रचार सामग्री पर होने वाला व्यय जुड़ता है। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी 70 लाख रुपए तक व्यय कर सकते हैं। राजनीतिक दलों के व्यय पर ऐसी कोई सीमा नहीं है। चुनाव में धनबल-बाहुबल रोकने और उम्मीदवारों को मुकाबले का समान धरातल उपलब्ध करवाने की लंबे समय से बात हो रही है।
चुनाव सुधार का मुद्दा दशकों से केंद्र के पास लंबित हैं। आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि चुनाव सुधार प्रशासनिक सुधारों का मुख्य भाग होना चाहिए, लेकिन आज तक मुख्यमंत्रियों के किसी भी सम्मेलन में इन पर चर्चा नहीं हुई। चुनावी फंडिंग के लिए मोदी सरकार द्वारा लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना पर अभी उच्चतम न्यायालय विचार कर रहा है। राजनीति का अपराधीकरण रोकने पर भी न्यायालय ने आयोग से सुझाव मांगे हैं।