अब आप स्वदेशी कृत्रिम दांत (डेंटल इम्प्लांट) भी लगवा सकेंगे। आईआईटी दिल्ली और मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के वैज्ञानिकों ने एक दशक की मेहनत से भारतीय डेंटल इम्प्लांट तैयार किया है। अभी तक भारत में चीन, अमेरिका, यूरोप, इजराइल, कोरिया से यह इम्प्लांट मंगाए जाते हैं। भारतीय डेंटल इम्प्लांट तीन गुना अधिक सस्ते पड़ेंगे। भारतीय डेंटल इम्प्लांट की मूल्य 7.5 हजार रुपए हाे सकती है, जबकि इसी गुणवत्ता के स्वीडन के इम्प्लांट की मूल्य 20 हजार रुपए हाेती है। देश में हर वर्ष 5-6 लाख मरीज डेंटल इम्प्लांट करवाते हैं।
इस परियोजना पर मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के पूर्व डायरेक्टर महेश वर्मा और आईआईटी दिल्ली के प्रो। नरेश भटनागर ने कार्य किया है। प्रो। भटनागर ने बताया कि यह प्राेजेक्ट सीएसआईआर की मदद से आरम्न्भ किया गया था।
टीम ने दुनियाभर के पांच हजार से अधिक पेटेंट पर शोध किए। उसके बाद 250 डिजाइन टेस्ट किए। 249 असफल हुए। 250वें टेस्ट में श्रेष्ठतर मॉडल मिल पाया। यह कार्य 2011 तक पूरा हो चुका था। इसके बाद 30 खरगोशों पर क्लीनिकल ट्रायल किया गया। इसके बाद 150 मरीजों पर परीक्षण किया गया। दोनों सफल रहे। उसके बाद कंपनियों से बिड मंगाई गई। देश की एक कंपनी ने 2017 में तकनीक खरीद कर फरीदाबाद में प्लांट लगाया। पिछले महीने ही इसका पेटेंट मिला है। दो हफ्ते पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिकों को बधाई दी थी।
प्रो। भटनागर ने बताया कि अभी इम्प्लांट के लिए दांतों में ड्रिल करनी पड़ती है। इस प्रक्रिया में दांतों की हड्&zwnjडी की चीरफाड़ हो जाती है और डॉक्टर के साथ 4-5 सिटिंग करनी पड़ती है। आईआईटी द्वारा विकसित बोन थ्रेड फॉर्मिंग डिजाइन में चीरफाड़ नहीं होगी। यह हडि्डयां इम्प्लांट को जकड़ लेंगी। इससे रिकवरी जल्दीी होगी। नैनो टेक्नाेलॉजी के आधार पर ड्रग इल्यूटिंग डेंटल इम्प्लांट भी बनाया जा रहा है, जो घाव तेजी से रिकवर करेगा। डॉक्टर के साथ एक सिटिंग में डेंटल इम्प्लांट हो जाएगा।
प्रो। भटनागर ने बताया कि भारत में विदेशों से आने वाले मेडिकल डिवाइस की टेस्टिंग के नियम सख्त नहीं हैं। भारत में सिर्फ यहीं बनने वाले डिवाइस की जांच होती है। विदेशी कंपनियां अपने देश के टेस्ट सर्टिफिकेट दिखाकर यहां डेंटल इम्प्लांट बेचती हैं। यह बहुत महंगे हाेते हैं। अभी सबसे अधिक इजराइल का डेंटल इंप्लांट प्रयोग किया जाता है। सस्ता विकल्प उपलब्ध होने से विदेशी इम्प्लांट पर निर्भरता कम होगी।