मुंगेर: गरीब, शोषित, पीड़ित, आदिवासियों के हक और अधिकार की बात करने वाले नक्सली संगठन के बड़े लीडर और हार्डकोर नक्सली आज सामंती प्रथा के सबसे बड़े उदाहरण हैं, जो अपने गांवों में किसी बड़े अधिकारी की तरह पूरी सुरक्षा के बीच रहते हैं । इतना ही नहीं, वहां के निर्धन आदिवासी पुरुष-महिलाओं से कब्जा जमाये खेतों में जहां दिहाड़ी मजदूरी कराते हैं, वहीं उनके बाल-बच्चों को शिक्षित नहीं होने देते हैं । यह हालात है मुंगेर, जमुई व लखीसराय के आदिवासी बाहुल्य गांवों का । यहां के हार्डकोर नक्सली लाखों के मालिक हैं । पत्रकारों की टीम ने डीआइजी के साथ भीमबांध जंगल से सटे नक्सल प्रभावित चोरमारा गांव के बड़ी टोला में रह रहे आम लोगों की दशा का जब अवलोकन किया, तो कई मामले सामने आये । इसी गांव में नक्सली संगठन के बड़े लीडर हार्डकोर नक्सली बालेश्वर कोड़ा और अर्जुन कोड़ा का घर है । इस गांव में 60-70 परिवार रहता है । इनमें अधिकतर घर मिट्टी व फूस के हैं । 3-4 परिवारों का घर खपरैल का है, जबकि इस गांव में मात्र बालेश्वर कोड़ा और अर्जुन कोड़ा का ही घर पक्का बना हुआ है । पत्रकारों की टीम ने स्थानीय ग्रामीणों से हार्डकोर नक्सलियों के बारे में पूछताछ की । पहले तो वे कुछ भी बोलने से कतराते रहे । लेकिन, कुछ देर बाद ग्रामीण पत्रकारों से घुलमिल गये और अपने शोषण, नक्सलियों का भय और सामंतवाद के बारे में बताने लगे । ग्रामीणों की मानें तो चोरमारा गांव के बड़ी टोला में ही बालेश्वर कोड़ा, अर्जुन कोड़ा सहित तीन अन्य हार्डकोर नक्सली रहते हैं । सरकार और जमींदारों की भूमि उनलोगों ने कब्जा कर रखी है । आदिवासियों से ही हार्डकोर नक्सली कब्जा वाले भूमि पर दिहाड़ी मजदूरी करवा कर अनाज उपजाते हैं । खेतों में उपजने वाली फसल और लेवी के रुपयों से उनकी आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ है ।