पुलवामा आक्रमण की आज पहली बरसी है। 14 फरवरी 2019 को जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर हुए आक्रमण में 40 सीआरपीएफ जवानों की जान गई थी। इस एक वर्ष के भीतर सीआरपीएफ ने सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) को कठोरतापूर्वक लागू करने की प्रक्रिया आरम्न्भ की है और स्वयं का आधुनिक आवेक्षण तंत्र भी विकसित किया है। सीआरपीएफ की 166वीं बटालियन के डिप्टी कमांडर शिवानंद सिंह ने दैनिक पत्रकार से कहा कि आवेक्षण और जांच के लिए अब हर यूनिट के पास अपनी डॉग स्क्वॉड है। हाईवे की पेट्रोलिंग करने वाली टीम लेटेस्ट गैजेट्स से लैस रहती है। काफिले के साथ क्विक रेस्पॉन्स टीम और मोबाइल बंकर्स भी चलते हैं। शिवानंद सिंह ने कहा- पुलवामा आक्रमण के बाद करीब 6 बार अलग-अलग रास्तों पर हमारे काफिलों को निशाना बनाने का प्रयास किया गई। पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स के इशारे पर कार्य कर रहे आतंकवादी हर बार असफल रहे और सुरक्षा बलों को कोई भारी हानि नहीं पहुंचा पाए। हमारे जवानों का जोश उच्च रहता है। वे हाईवे पर यात्रा करने से डरते नहीं हैं। एक वर्ष पहले जब हमारे काफिले पर हमला किया गया था, तब किसी भी एसओपी का उल्लंघन नहीं किया गया था। इस आक्रमण के बाद हमने छोटे और सुगठित काफिले कश्मीर घाटी भेजने आरम्न्भ किए, ताकि उनकी सुरक्षा को निश्चित किया जा सके। हर दिन आर्मी, सीआरपीएफ, बीएसएफ समेत केंद्रीय सुरक्षा बलों के 3000-4000 जवान जम्मू से श्रीनगर आते-जाते हैं।
सिंह ने बताया- एसओपी को कठोरतापूर्वक लागू करने के साथ-साथ हमारा जोर रोड ओपनिंग पार्टी को लेटेस्ट गैजेट्स से लैस करना है, ताकि वे काफिले के रास्ते में आईईडी और अन्य विस्फोटकों की पहचान कर सकें। उन्होंने कहा- सहयोगी एजेंसियों के अतिरिक्त सेना भी किसी भी काफिले के मूवमेंट से पहले नेशनल हाईवे की पड़ताल करती है। आईईडी ब्लास्ट के बड़े खतरे को देखते हुए वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने का अलर्ट जारी करते रहते हैं। रास्ते में कड़ी आवेक्षण बरतने में हम किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते।
सिंह ने कहा- हमने क्षेत्र की सभी यूनिट्स को उनकी डॉग स्क्वॉड और बम डिस्पोजल यूनिट्स दी हैं ताकि रियल टाइम में किसी भी तरह के खतरे को पहचाना जा सके। " 300 किलोमीटर लंबे जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर तुरंत रेस्पॉन्स करने के लिए हमने संवेदनशील जगहों पर क्विक रिएक्शन टीम तैनात की हैं। हमारी पेट्रोल पार्टियां निरंतर नेशनल हाईवे की आवेक्षण करती हैं। पूरी तरह से क्षेत्र के निरीक्षण के लिए उनके पास स्निफर डॉग भी रहते हैं। रोड ओपनिंग पार्टी भी तैनात की जाती हैं। यह माइंस और बम की जांच करती हैं।'
शिवानंद सिंह ने कहा, ‘ ‘ संवेदनशील स्थानों पर सीआरपीएफ के सुरक्षा चेक प्वाइंट भी बढ़ाए गए हैं ताकि काफिला सहज तरीके से मूवमेंट कर सके। हम अप अपने काफिलों में प्राइवेट बस और ट्रक जैसे वाहनों को सम्मिलित करना बंद कर दिया है। आमतौर पर सीआरपीएफ का काफिला एक दिन के अंतराल पर गुजरता है, जबकि सेना जम्मू स्थित ट्रांजिट कैंप में अपने जवानों को रोजाना भेजती है। छुट्टी से घर लौटने के बाद जवान इन्हीं ट्रांजिट कैंपों में रिपोर्ट करते हैं। इन कैंपों में रहने की सुविधा भी रहती है।, ,
शिवानंद सिंह ने बताया कि नेशनल हाईवे पर पड़ने वाली सर्विस रोड, कटआउट्स और गांवों को जोड़ने वाली सड़कें सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती हैं। बिजबेहेरा कस्बे से दक्षिण कश्मीर के पम्पोर तक का 35 किलोमीटर तक का इलाका सुरक्षा बलों के लिए मृत्यु का जाल है। इस क्षेत्र में पिछले कई वर्षों में सुरक्षा बलों पर कई आक्रमण हुए और बहुत हानि भी हुआ। इस क्षेत्र में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश का ओवरग्राउंड कर्मियों का अच्छा नेटवर्क है। वे इस क्षेत्र में ओवर ग्राउंड कर्मियों के घरों का प्रयोग छिपने में करते हैं और इसके बाद सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं। पुलवामा आक्रमण के तुरंत बाद सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में जैश-ए-मोहम्मद की लीडरशिप को समाप्त करने का ऑपरेशन आरम्न्भ कर दिया था। सीआरपीएफ काफिले पर हमला करने वाले आदिल अहमद डार को प्रशिक्षण देने वाले तीन जैश आतंकियों को आक्रमण के 100 घंटे के भीतर ही सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। इनमें आक्रमण का मास्टर माइंड अब्दुल रशीद गाजी भी सम्मिलित था। इस आक्रमण के तीन महीने के भीतर जैश के करीब 24 आतंकी मारे गए थे। सालभर के समय आतंकवाद का गढ़ माने जाने वाले दक्षिण कश्मीर में 160 आतंकवादी मारे गए। एक जनवरी 2020 से लेकर अब तक 20 आतंकवादी मारे गए। पुलवामा आक्रमण के बाद 30 मार्च 2019 को जम्मू-कश्मीर हाईवे पर बनिहाल के पास सीआरपीएफ के काफिले पर हमला किया गया। 17 जून 2019 को पुलवामा में 44 राष्ट्रीय राइफल्स के मोबाइल पेट्रोल व्हीकल को आईईडी से उड़ाने का प्रयास किया गई। इस आक्रमण में दो जवान शहीद हुए।