पिछले महीने अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट जिहादियों द्वारा एक सिख गुरुद्वारे पर किये गए एक आत्मघाती बम विस्फोट में 28 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई समर्थित खुरासान मॉडयूल के आईएस आतंकियों ने इस कृत्य को कश्मीर में भारत की गतिविधियों का प्रत्युत्तर बताया।
आतंकवादियों ने बचे हुए प्रताड़ित सिखों को यह सन्देश दे दिया है कि उनके पास मात्र दो विकल्प हैं – “या तो वह अफ़ग़ानिस्तान छोड़ भारत चले जाएँ या सिख धर्म त्याग कर इस्लाम अपना लें।”
अफगानिस्तान में बचे हुए सिखों और हिंदुओं का इस्लाम के नाम पर अत्याचार और नर-संहार जारी है। आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान में मात्र 650 सिख और हिंदू बचे हैं।
इस नृशंस हमले के तुरंत बाद भारत के विदेश मंत्री और पूर्व विदेश सचिव रहे एस जयशंकर को लिखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह ने कहा, “अफगानिस्तान में ऐसे बहुत से सिख परिवार है जो भारत आना चाहते हैं। आपसे अनुरोध है कि उन्हें वहां से शीघ्रातिशीघ्र निकालें। संकट के समय यह हमारा धर्म है कि हम उनकी सहायता करें”।
यह एक विडंबना ही थी क्योंकि भारतीय संसद द्वारा पारित किये गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) – जिसमें पडोसी देशों में प्रताड़ना झेल रहे अल्पसंख्यक समुदायों को भारत की नागरिकता प्रदान कर शरण और सुरक्षा देने की बात कही गई थी – उसके विरुद्ध पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया गया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव में नए कानून को “संविधान विरोधी” और “समाज को बांटने वाला” बताया गया। आम आदमी पार्टी ने भी इसके पक्ष में मत दिया था।
अफगानिस्तान के घटते सिख अल्पसंख्यक पड़ोसी राष्ट्र भारत आने पर विचार कर रहे थे लेकिन भारत में चल रहे नागरिकता संशोधन अधिनियम के राजनीतिकरण व मुस्लिम विरोध के चलते हताश हैं। विदित हो कि भारत के कुछ सिख संगठनों ने भी प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से इस आन्दोलन में विरोध कर रहे मुसलमानों का साथ दिया था।
पडोसी देशों में हो रहे सिखों और हिन्दुओं पर हो रहे अमानवीय व आतंकी कुकृत्यों की अनदेखी करते और मानव मूल्यों की घोर उपेक्षा करते हुए, अमेरिका, पश्चिमी देशों और यहाँ तक कि भारत में स्थित कई इस्लामिक समूह इन स्वधर्मी आतंकवादियों की भर्तसना करने के बजाए उनके बचाव पर उतर आते हैं और हर मोड़ पर “इस्लामोफोबिया” का आरोप लगा देते हैं।
भारत में हो रहे इन्हीं राजनीतिक उठक पठक के चलते अब उत्पीड़ित सिखों और हिंदुओं ने सहायता के लिए अमेरिका से आस लगाई है।
अमेरिकी समाचार पत्र “वॉल स्ट्रीट जर्नल”, में पिछले सप्ताह (18 अप्रैल, 2020) छपे एक लेख – “The Last Sikhs and Hindus in Afghanistan Plead for U.S. Help” में जेसिका डोनाती और एहसानुल्लाह अमीरी, ने लिखा कि अफगानिस्तान में अंतिम बचे सिखों और हिंदुओं ने इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के हमले से पीड़ित होने के बाद अमेरिका में शरण माँगा है।
दोनों अल्पसंख्यक समुदायों में अनिश्चितता और भय, अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में हुए समझौते के बाद, और बढ़ गया है क्योंकि इस सौदे के बाद अमेरिका अपने सभी सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान से वापस बुला लेगा।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल से बात करते हुए एक सिख समुदाय के नेता ने, जिन्होंने काबुल हमले में तीन करीबी सम्बन्धियों को खो दिया, कहा, “अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद हमारे लिए यहाँ जीवन असंभव हो जाएगा। इसमें कोई संशय नहीं कि हम सबका भी वध कर दिया जाएगा। हम तात्कालिक रूप से अफ़ग़ानिस्तान स्थित अमेरिकी सेना के बेस में शरणार्थी का दर्जा और सुरक्षा चाहते हैं। हमें शीघ्र सुरक्षा प्रदान की जाए।”
अब यह देखने की बात होगी की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों की विश्वव्यापी सुरक्षा और समर्थन करने का ढिंढोरा पिटती रही है, इस सम्बन्ध में क्या कदम उठती है।