अमरनाथ यात्रा 23 जून, आषाढ़ मास के द्वितीया से आरम्न्भ होगी। इसका समापन रक्षाबंधन, 3 अगस्त 2020 को होगा। जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल और श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष गिरीश चंद्र मुर्मू ने जम्मू में आयोजित 37वीं बोर्ड बैठक में इन तारीखों की घोषणा की है। हर वर्ष निश्चित समय के लिए शिवजी की इस गुफा को दर्शन के लिए खोला जाता है। हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक श्रद्धालु यहां बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
इस बार आषाढ़ मास की पूर्णिमा 21 जून को है, लेकिन इस दिन सूर्यग्रहण रहेगा। संभवतः इसी कारण से अमरनाथ दर्शन दो दिन बाद 23 जून से आरम्न्भ होंगे। यद्यपि, अभी अमरनाथ श्राइन बोर्ड की तरफ से इसे लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पिछले वर्ष अनुच्छेद 370 हटाने के सिलसिले में इस यात्रा को बीच में ही रोक दिया गया था। इससे कई श्रद्धालु बिना दर्शन के लौटे थे। इस बार यात्रा को लेकर कुछ विशेष प्रबंध किए जाने पर जोर दिया जा रहा है।
अमरनाथ गुफा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यहां बर्फ के पानी की बूंदें निरंतर टपकती रहती हैं, जिससे 10-12 फीट ऊंचा शिवलिंग बनता है। अमरनाथ शिवलिंग की ऊंचाई चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ घटती-बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन शिवलिंग अपने पूरे आकार में होता है, जबकि अमावस्या के दिन शिवलिंग का आकार कुछ छोटा हो जाता है। ऐसा चंद्रमा के घटने-बढ़ने से होता है।
अमरनाथ गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गुफा 150 फीट ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है। इस तीर्थ का सर्वाधिक महत्व इसलिए है, क्योंकि इसी स्थान पर भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यह गुफा हिमालय पर्वत पर करीब 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुफा में शिवलिंग बर्फ जमने से निर्मित होता है। यह शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक रूप से निश्चित समय के लिए ही बनता है। गुफा में शिवलिंग के साथ ही श्रीगणेश, पार्वती और भैरव के हिमखंड भी निर्मित होते हैं।
बाबा अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। यानी देशभर के किसी भी क्षेत्र से पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है। पहलगाम से अमरनाथ जाने का रास्ता सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है, लेकिन यह मार्ग पार करना दुष्कर भरा होता है। इसी वजह से अधिकतर यात्री पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाते हैं।
इस गुफा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले किसने की, इस संबंध में कोई स्पष्ट सूचना उपलब्ध नहीं है। लेकिन, यहां ऐसी मान्यता प्रचलित है कि बहुत समय पहले इस क्षेत्र में एक चरवाहे को कोई संत दिखाई दिए गए थे। संत ने चरवाहे को कोयले से भरी हुई एक पोटली दी थी। जब चरवाहा अपने घर पहुंचा तब पोटली के अंदर का कोयला सोना बन गया था। यह चमत्कार देखकर चरवाहा आश्चर्यचकित हो गया और संत को खोजने के लिए पुन: उसी स्थान पर पहुंच गया। संत को खोजते-खोजते उस चरवाहे को अमरनाथ की गुफा दिखाई दी। जब वहां के लोगों ने इस चमत्कार के विषय में सुना तो अमरनाथ गुफा को दैवीय स्थान माना जाने लगा और यहां पूजन आरम्न्भ हो गया।
मान्यता है कि प्राचीन समय में इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। माता पार्वती के साथ ही इस रहस्य को शुक (कबूतर) ने भी सुन लिया था। यह शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए। गुफा में आज भी कुछ श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है। भगवान शिव जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। यह सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के समय रास्ते में दिखाई देते हैं।