पाकिस्तानी संसद में नागरिकता कानून को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर मंगलवार को कहा- पाकिस्तानी संसद में नागरिकता संशोधन कानून पर पारित प्रस्ताव को भारत सिरे से अस्वीकृत करता है। यह पूरी तरह से भारत का अंदरूनी मामला है। यह प्रस्ताव पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अत्याचार से ध्यान भटकाने की कोशिश है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की घटती संख्या यह बताती है कि उनके साथ वहां पर किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है। फिर चाहे वे हिंदू, सिख, ईसाई या किसी अन्य धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक हों, पाकिस्तान में उनकी आबादी घट रही है।
विदेश मंत्रालय ने कहा- प्रस्ताव पारित करके पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के मुद्दे पर अपना झूठ फैलाने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान को सबसे पहले सीमापार से भारत में आतंकी गतिविधियों को समर्थन देने पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि इस प्रकार की कोशिशें विफल की जाएगी।
पाकिस्तान के संसद में सोमवार को भारत के नागरिकता कानून के विरुद्ध प्रस्ताव पास हुआ था। इसमें नए कानून की निंदा की गई थी। पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री शफाकत महमूद ने कहा था- यह संशोधन भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन है। यह विशेषकर भारत और पाकिस्तान के बीच सुरक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा पर बनी सहमति के विरुद्ध है।
संशोधित कानून में पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को नागरिकता मिलने का समय घटाकर 11 वर्ष से 6 वर्ष किया गया है। मुस्लिमों और अन्य देशों के नागरिकों के लिए यह अवधि 11 वर्ष ही रहेगी। दूसरा जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है या उनके दस्तावेजों की वैधता समाप्त हो गई है, उन्हें भी भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की सुविधा रहेगी।