बिहार में किसानों को कृषि ऋण देने में बैंक आनाकानी कर लक्ष्य से बहुत कम ऋण का वितरण करती है। वर्ष 2018-19 में कृषि ऋण का लक्ष्य 42 हजार करोड़ रुपए ऋण था, जबकि वितरण 19 हजार करोड़ रुपए ही किए गए।
नाबार्ड द्वारा बिहार के लिए बनाए गए “स्टेट फोकस पेपर 2020-2021” के आंकड़ो से यह जानकारी सामने आयी है। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की संख्या में भी निरंतर गिरावट पायी गई है।
इस रिपोर्ट को जारी करने के पश्चात उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि कृषि क्षेत्र में ऋण का प्रवाह नहीं बढ़ेगा तो राज्य का अपेक्षित विकास संभव नहीं है। वर्ष 2014-15 में केसीसी की संख्या 36.14 लाख थी, जो 2018-19 में घटकर 19.55 लाख रह गई है।
उन्होंने कहा कि फोकस पेपर 2020-21 में बिहार के प्राथमिक क्षेत्रों के लिए आकलित ऋण क्षमता 1,36,830 करोड़ है। जिसमें कृषि ऋण का लक्ष्य 52243 करोड़ है। बैंक राज्य में इस लक्ष्य के अनुरूप ऋण वितरण करें। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि मत्स्य उत्पादन में राज्य आत्मनिर्भरता के समीप पहुंच गया है। यह अंतर अब केवल 40 हजार मैट्रिक टन का रह गया है। वित्त विभाग के प्रधान सचिव एस सिद्धार्थ ने कहा कि ऋण देने में कॉमर्शियल बैंक के आंकड़ों में भरी गिरावट आयी है।
सुशील मोदी ने कहा कि बिहार से होने वाले निर्यात में देश में सर्वाधिक 46% की वृद्धि हुई है। जबकि राष्ट्रीय निर्यात विकास दर 8.1% है। देश से होने वाले निर्यात में राज्य का योगदान 0.50% है। वर्ष 2017-18 में राज्य से 1,748 करोड़ के 8.74 लाख मैट्रिक टन खाद्य पदार्थ और दूसरी वस्तुओं का निर्यात किया गया, जो 2018-19 में 9.35 लाख मैट्रिक टन हो गया। जिसका मूल्य 2025 हजार करोड़ है। इसमें बासमती चावल 32%, मक्का 26.9 व गेहूं 17.% रहा।