उच्चतम न्यायालय ने बिहार सेवा चयन आयोग को निर्देश दिया है कि वह 2012 और 2103 में आयोजित की गई चयन परीक्षाओं का पुन: मूल्यांकन करे और उसका परिणाम प्रकाशित करे। न्यायालय ने यह आदेश विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद दिया है, जिसमें समिति ने पाया था कुछ प्रश्न अनुचित थे और कुछ के एक से अधिक उत्तर हो सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि जो नियुक्तियां हो चुकी हैं, उन्हें नहीं छेड़ा जाएगा। न्यायाधीश आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश देकर सेवा आयोग से कहा कि यदि मूल्यांकन के बाद उम्मीदवारों कि संख्या रिक्तियों से अधिक हो जाती हैं तो शेष उम्मीदवारों को 31.12.2019 में पैदा होने वाली भविष्य की रिक्तियों में समायोजित किया जाए।
मामले के अनुसार बिहार सरकार ने विभिन्न विभागों हेतु वर्ग 3 के पदों पर 2010 में 1,569 रिक्तियां निकालीं। अप्रैल 2012 में प्री परीक्षा का नतीजा घोषित हुआ, जिसे कई उम्मीदवारों ने न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि परीक्षा में कुछ प्रश्न अनुचित हैं। उच्च न्यायालय ने पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया और इसमें 27,000 से अधिक उम्मीदवार सफल हो गए। इस बीच रिक्तियों कि संख्या 3,200 से अधिक हो गई। 2013 ने मुख्य परीक्षा हुई और परिणाम आए। 915 उम्मीदवारों को नियुक्त कर दिया गया। इस बीच मामला खंडपीठ में चला गया और खंडपीठ ने वरिष्ठता पर भी आदेश दे दिया।
इनके विरुद्ध सेवा आयोग ने उच्चतम न्यायालय में आह्वान किया। न्यायालय ने सवालों की जांच हेतु विशेषज्ञों की कमेटी बनाई। कमेटी ने रिपोर्ट दी और बताया कि चयन परीक्षा में कुछ प्रश्न सही नहीं थे। उसके बाद न्यायालय ने समिति की रिपोर्ट को देखते हुए पुन: मूल्यांकन के आदेश दिए।