कोरोनावायरस का प्रकोप तेजी से विश्व के अलग-अलग हिस्सों में बढ़ता जा रहा है। यह वायरस विश्व के 90 से अधिक मुल्कों में फैल चुका है। भारत में कोरोनावायरस के अब तक 74 मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें 57 भारतीय और 17 विदेशी नागरिक सम्मिलित हैं। भारत में 30 जनवरी को कोरोनावायरस का पहला रोगी सामने आया था, जिसे उपचार के बाद 20 फरवरी को छुट्टी दे दी गई। देश में पहला कोरोनावायरस का रोगी केरल के त्रिशूर की रहने वाली 20 वर्षीय मेडिकल छात्रा थी। जो चीन के वुहान प्रांत से लौटी थी, उसे एक सप्ताह बाद पता चला कि वह कोरोनावायरस से पीड़ित हैं।
छात्रा ने बताया कि जब उसे पता चला कि वह कोरोनावायरस से पीड़ित है तो वह घबराई नहीं। उसने बताया, ‘जब मुझे लक्षण दिखाई देने लगे तो मैं घबराई नहीं, बल्कि मैं सतर्क हो गई। मुझे पता था कि मेरे माता-पिता इसकी चपेट में आ सकते हैं, इसलिए मैंने निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जिससे मुझे संक्रमण से बचने में सहायता मिली।’
तृतीय वर्ष की मेडिकल छात्रा 24 जनवरी को वुहान से कोच्चि लौटी थी। छात्रा ने बताया, ‘जब हम कोच्चि हवाईअड्डे पर पहुंचे तो हमने वहां एक फॉर्म भरा, जिसमें हमने अपने पते की सूचना दी और इस फॉर्म में हमें बताया गया था कि हम अपने क्षेत्र में संबंधित स्वास्थ्य अधिकारियों को हमारे आगमन की सूचना दें। चिकित्सा के छात्र होने के नाते, हम दिशानिर्देशों का पालन करने के बारे में पूरी तरह सतर्क थे।’
छात्रा ने बताया कि सावधानी के तौर पर, उसने अपनी गर्भवती भाभी से आग्रह किया कि वह उसके आने से पहले घर से चली जाए। 25 जनवरी को उसने जिला स्वास्थ्य अधिकारी को अपने आगमन की सूचना दी। अधिकारी ने इसे अपने रजिस्टर में रिकॉर्ड किया और आगे के निर्देशो का पालन किया। घर पहुंचने पर छात्रा ने स्वयं को घर में नजरबंद कर लिया और मास्क लगाना आरम्न्भ कर दिया, लेकिन 27 जनवरी को उसे गले में खराश होने लगी।
‘चीन से वापस आने पर मुझे हर बार सर्दी या बुखार हो जाता था। मेरे रिश्तेदारों ने मुझे गले में खराश से निदान पाने के लिए भाप या सामान्य दवाएं लेने की परामर्श दी, लेकिन मैंने डॉक्टर से संपर्क करने पर जोर दिया। मैं सिर्फ यह जानना चाहती थी कि यह कोरोनवायरस था या नहीं। मैं अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के बारे में अधिक चिंतित थी और यह जाने बिना घर पर नहीं रहना चाहती थी कि मुझे क्या हुआ है।’
जब स्वास्थ्य अधिकारियों से इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने आग्रह किया कि वह जांच के लिए जिला चिकित्सालय आए। वहां चार अन्य लोगों को एक पृथक केंद्र में रखा गया था। छात्रा के रक्त के नमूने, गले में खराश, नाक में सूजन, मूत्र और मल के नमूनों को जांच के लिए लिया गया। छात्रा को कोरोनावायरस से संक्रमण की पुष्टि 30 जनवरी को हुई और उसे अगले दिन त्रिशूर मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के आइसोलेशन वार्ड (पृथक केंद्र) में स्थानांतरित कर दिया गया।
‘मुझे 20 दिनों तक पृथक केंद्र में रखा गया और कई बार यह मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता था। पहले दो हफ्तों में, मुझे कुछ भी असामान्य नहीं लगा। हर दिन, प्रशिक्षित कर्मचारी संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए मेरे कपड़े लेते और इसे जला देते। मुझे अपने फोन को साफ करने का निर्देश दिया गया था, जो मैं चीन में भी करती थी। चूंकि मुझे अन्य चिकित्सा सम्बन्धी समस्याएं नहीं थी, इसलिए डॉक्टरों ने मुझे मेरी पसंद का भोजन करने की अनुमति दी।’
‘परामर्शदाताओं ने मुझे बुरा और उदास महसूस होने पर सांस लेने जैसे व्यायाम टिप्स दिए।’
छात्रा को 20 फरवरी को चिकित्सालय से छुट्टी दे दी गई, लकिन वह एक मार्च तक घर में ही रही। केरल में तेजी से फैले रहे कोरोनावायरस को देखते हुए, छात्रा का कहना है कि वह बस इतना ही कहना चाहती है कि नियमों का कठोरतापूर्वक पालन किया जाए।
उसने कहा, ‘आप जितना शीघ्र स्वास्थ्य विभाग को इस बारे में सूचना देंगे वह उतना ही श्रेष्ठतर होगा। समय पर हस्तक्षेप और सही उपचार ने मुझे शीघ्र से ठीक होने में सहायता की और वायरस को फैलने से भी रोका।’
चूंकि चीन में कोरोनावायरस का खतरा अभी भी बना हुआ है, इसलिए चिकित्सा विश्वविद्यालय विश्व भर के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन कर रहा है। छात्रा ऑनलाइन सुविधा का उपयोग करके अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए है और वह तभी पढ़ाई के लिए चीन वापस जाएगी जब यात्रा की अनुमति दी जाएगी।