देश में बढ़ते कोरोना संक्रमित मामलों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना जांच के लिए पैसे लेने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। कोरोना की जांच को लेकर निजी प्रयोगशाला 4,500 रुपये तक ले रहे हैं।
न्यायालय ने कहा कि निजी प्रयोगशाला अपनी मनमानी से पैसे नहीं वसूल सकते। हम इस मामले पर आदेश पारित करेंगे।
न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने सुनवाई के समय कहा हम निजी प्रयोगशालाओं को कोविड-19 के परीक्षण के लिए पैसे वसूलने की अनुमति नहीं देते हैं। सरकार को इसकी जांच नि:शुल्क में करनी चाहिए।
साथ ही न्यायालय ने सरकार को सुझाव दिया है कि निजी प्रयोगशाला कोरोना परीक्षण के पैसे रोगी की बनिस्पत सरकार से ले सकें, ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है।
सुप्रीम न्यायालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के माध्यम से इस याचिका पर सुनवाई की जा रही थी और महा न्यायभिकर्ता से न्यायालय ने कहा है कि शीघ्र ही न्यायालय इस बारे में आदेश पारित करेगी। न्यायालय ने केंद्र की ओर से प्रस्तुत महा न्यायभिकर्ता जनरल तुषार मेहता को सुझाव देते हुए कहा कि निजी प्रयोगशालाओं को जांच के लिए अधिक शुल्क न दें। कोई ऐसा तंत्र विकसित करें जिसके अंतर्गत निजी प्रयोगशाला के परीक्षण राशि को सरकार वापस कर सके। महा न्यायभिकर्ता ने उत्तर देते हुए कहा कि वह इस मामले में उचित कदम उठाएंगे। सरकार अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रही है।
भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या अत्यंत तेजी से बढ़ रही है इसको ध्यान में रखते हुए आईसीएमआर ने 24 मार्च को कुछ निजी प्रयोगशालाओं को कोविड-19 का परीक्षण करने की अनुमति दी थी। इसके लिए कुछ नियम बनाए गए थे जिसका पालन यह प्रयोगशाला कर रहे थे। कुल 26 निजी प्रयोगशालाओं को इसकी अनुमति दी गई थी और इसके लिए 4500 रुपये की शुल्क राशि तय की गई थी।
इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से आग्रह किया था कि इसकी जांच नि:शुल्क में करवानी चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना था कि तालाबंदी के समय लोगों के सामने आर्थिक संकट है, जिससे लोग कोरोना संक्रमण की इतनी महंगी जांच से बचेंगे जिसके कारण रोग फैल सकता है।