भारत में भ्रष्टाचार में गिरावट आई है।180 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग पिछले वर्ष के मुकाबले तीन पायदान सुधरी है।पिछले वर्ष देश भ्रष्टाचार में81वें नंबर पर था।इस वर्ष पारदर्शिता बढ़ने के साथ रैंकिंग में सुधार हुआ। भारत की मौजूदा रैंकिंग78वीं है। ट्रांसपेरेंसी अंतर्राष्ट्रीय के सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले वर्ष 56% नागरिकों ने कहा था कि उन्होंने रिश्वत दी है, वहीं इस वर्ष ऐसे लोगों की संख्या 51% ही रही। पासपोर्ट और रेल टिकट जैसी सुविधाओं को केंद्रीकृत और कम्प्यूटराइज्ड करने से भ्रष्टाचार में कमी आई है।
नोटबंदी को भ्रष्टाचार में आई गिरावट का कारण माना
हालांकि, सरकारी दफ्तर रिश्वतखोरी का बड़ा अड्डा बने हुए हैं। इनमें भी सबसे अधिक रिश्वतखोरी राज्य सरकारों के कार्यालायों में होती है। सर्वेक्षण में 1.90 लाख लोगों को सम्मिलित किया गया। इसमें 64% पुरुष और 36% महिलाएं सम्मिलित हुईं। सर्वेक्षण में 48% लोगों ने माना कि राज्य सरकार या स्थानीय स्तर पर सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए। लोगों ने 2017 में हुई नोटबंदी के कारण से भी भ्रष्टाचार में गिरावट को कारण माना। तब कुछ समय तक लोगों के पास देने के लिए नकद उपलब्ध नहीं था।
देश में रिश्वत के मामले बढ़े
ऐसे लोग जो यह मानते हैं कि रिश्वत के बिना काम नहीं हो सकता, उनकी संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले 36% से बढ़कर 38% हो गई। जो रिश्वत को महज एक सुविधा शुल्क समझते हैं उनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। 2018 में 22% के मुकाबले ऐसे मानने वाले लोगों की संख्या 26% हो गई है।जहां तक बात रिश्वत लेने वाले दफ्तरों की है, तो प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन और भूमि से जुड़े मामलों में सबसे अधिक रिश्वत दी गई। 26% लोगों ने इस विभाग में रिश्वत दी जबकि 19% ने पुलिस विभाग में रिश्वत दी।