(त्रिपुरारि)। यह अमानवीयता की हद है। बरारी श्मशान घाट पर खुलेआम शव के सौदागरों की जेबें गर्म हो रही हैं। मजबूरी की यह ऐसी सौदेबाजी है जिसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। अंतिम संस्कार पर दो से पांच हजार रुपए व्यय ना कर पाने वाले लोगों से यहां लूट हो रही है। कम मूल्य पर अंतिम संस्कार कराने के नाम पर यहां पूरा गिरोह सक्रिय है। वे लाशों को सीधे गंगा में बहा रहे हैं। न कोई जांच और न पड़ताल।
नाविक और घाटों पर अंतिम संस्कार करवाने वाले राजा की मिलीभगत से यह सब चल रहा है। गिरोह में छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। इससे यहां गंगा मैली हो रही है, नमामि गंगे योजना दम तोड़ रही है। रोजाना औसतन पांच लाशों को गंगा में इसी तरह से फेंका जा रहा है। प्रति लाश 1100 रुपए की दर से 5500 रुपए की वसूली हो रही है। यदि वर्ष का हिसाब लगाएं तो यह राशि 20 लाख से अधिक की होती है। नगर निगम भी इसे अनुचित तो मानता है पर रोकने की कोई योजना नहीं।
जगदीशपुर तगेपुर गांव के रीतेश पंडित की 10 वर्षीय भतीजी रूबी की मृत्यु बिजली के खंभे लगाने के समय सिर पर गिरने से हुई। परिजन अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचे। एक नाविक व दाह संस्कार करवाने वाले ने परिजनों से कहा कि 1100 रुपए में हो जाएगा। निर्धनी से जूझ रहे परिजनों ने उनकी बात मान ली। इसके बाद मृत रूबी के शव को प्लास्टिक में पैक किया। शव के साथ ईंट से भरी बोरी बांधी और नाव से पुल घाट व श्मशान के बीच गंगा में बहा दिया।
गंगा में डॉल्फिन अभ्यारण्य क्षेत्र बनाया गया है। इसमें मृत पशुओं व इंसानी शवों को बहाए जाने पर हम रोकथाम नहीं कर सकते। यह कार्य नगर निगम का है। उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए। – एस। सुधाकर, डीएफओ
निगम के किसी भी एक्ट में गंगा में प्रदूषण फैलाने पर कार्रवाई का प्रावधान नहीं है। लाशों का प्रॉपर डिस्पोजल करना और सुविधाएं देना ही हमारा कार्य है। -सत्येंद्र प्रसाद वर्मा, पीआरओ, नगर निगम
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा के 500 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के कचरा फेंकने पर रोक लगाई है। ऐसा करने पर 50 हजार तक का जुर्माना तय है। अधजले शव व मृत पशुओं, मल-मूत्र, गंदे जल व शहर भर के कचरे को बहाए जाने पर भी कार्रवाई तय है। इस पर जिला प्रशासन और नगर निगम दोनों ही कार्रवाई कर सकता है।