दुनियाके शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग करने वाली संस्था क्यूएस ने वर्ल्ड रैंकिंग के बाद वर्तमान एशिया के संस्थानों की भी रैंकिंग जारी कर दी है। भारत का मुकाबला एशिया में चाइना से है। फिलहाल भारत इस मामले में पिछड़ रहा है। टॉप 10 में चाइना के संस्थानों ने जगह बनाई है। जबकि टॉप 30 में भारत का एक भी संस्थान नहीं है। पिछले वर्ष आईआईटी बॉम्बे की रैंक 33 थी, जो इस वर्ष 34 पहुंच गई है।
नई आईआईटी इंदौर ने अपनी परफॉरमेंस में गजब का सुधार किया है। आईआईटी इंदौर की एशिया रैंक पिछले वर्ष 241 थी। इस वर्ष इंदौर 188 स्थान पर है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर इस लिस्ट में पहले स्थान पर रही है। आईआईटी दिल्ली 40 से 43, मद्रास 48 से 50, आईआईएससी बैंगलुरू 50 से 51, आईआईटी खड़गपुर 53 से 56 व कानपुर 61 से 65वें स्थान पर पहुंच गई है। यूडीसीटी मुंबई का प्रदर्शन भी श्रेष्ठतर रहा है।
167 से वह 152 के स्थान पर है। टॉप टेन में चाइना की दस यूनिवर्सिटी हैं। आईआईटी बॉम्बे का एक पायदान पीछे जाना चिंताजनक है।
आईआईटी का एशिया व ग्लोबल लेवल पर पिछड़ने का एक सबसे बड़ा कारण ब्रेन ड्रेन माना जाता रहा है। अभी भी जेईई एडवांस्ड और आईआईटी टॉपर बाहर जाकर आगे की पढ़ाई करते हैं। यहां तक एडवांस्ड के टॉपर आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश मिलने के बाद सीएस ब्रांच में जाकर भी आईआईटी को छोड़कर एमआईटी में जा रहे हैं। इस कारण एमआईटी व अन्य संस्थानों से पास आउट स्टफ श्रेष्ठतर रहता है। यही कारण ही विश्व की श्रेष्ठ कंपनियों में आईआईटी के बाद विदेशों के शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रोफेशनल्स चला रहे हैं।