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Home - विशेष

गेहूं खरीद में विलम्ब से किसान कठिनाई में

by आदर्श कुमार
अप्रैल 24, 2020
Reading Time: 1 min

देश में कुल गेहूं उत्पादन का तीन चौथाई भाग पैदा करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के करोड़ों किसान परेशान हैं। मौसम की मार, श्रमिकों की कमी के कारण एक तो फसल कटने में विलम्ब हुई, दूसरे मंडियों में मुनासिब दर न मिलना कोढ़ में खाज बन गया है। ऊपर से खरीद केंद्रों पर सरकारी नुमाइंदों का रवैया किसानों को नाकों चने चबवा रहा है। गेहूं की खरीद लंबी खिंचने से अगली फसल की शुरूआत में भी विलम्ब का संकट मंडरा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कुल 55 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से १,50,000 मीट्रिक टन भारतीय खाद्य निगम सीधे खरीद करेगा, बाकी का राज्य की एजेंसियां खरीदेंगी। यद्यपि कर्मचारियों की बेरुखी से किसान केंद्रों पर कम आ रहे हैं।

अपर खाद्य आयुक्त सुनील कुमार बताते हैं, गेहूं खरीद के लिए 5189 केंद्र बनाए गए हैं, 21 अप्रैल तक कुल १,03,196 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। पीलीभीत के किसान लालू मिश्रा ने अपना गेहूं सरकारी खरीद केन्द्रों पर न बेच कर एक फ्लोर मिल को बेच दिया, वह भी उधार। लालू कहते हैं, इस समय मंडी का दर 1700 रुपये प्रति क्विंटल है, ऊपर से प्रति क्विंटल पर एक किलो कर्दा उसके बाद एक प्रतिशत मुद्दत देनी पड़ती है, यह सब किसान के पास से जाता है।

खुले बाजार में गेहूं का भाव कम होने का बड़ा कारण है इसकी मांग न होना है। इसे समझाते हुए सीतापुर की नवीन गल्ला मंडी में पसरे सन्नाटे को दिखाते हुए आढ़ती और उत्तर प्रदेश राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष विनय गुप्ता कहते हैं, पिछले वर्ष इस समय तक मंडी में प्रत्येक दिन 30,000 क्विंटल तक गेहूं का करोबार होता था, जबकि इस वर्ष मात्र 10 प्रतिशत ही आवक है। छोटे व्यापारी किसान से खरीद कर माल ला नहीं पा रहे, उन्हें पुलिस परेशान करती है।

विनय गुप्ता आगे बताते हैं, अधिकतर फ्लोर मिलें बंद होने से मंडी में गेहूं की मांग भी कम है, इससे दर भी थोड़ा कम है। तालाबंदी के कारण मैदा की खपत करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां, होटल और दुकानें बंद चल रही हैं, बाजार में मैदे की खपत कम होने से गेहूं की मांग भी नहीं है, दूसरे यह भी कि इन आटा मिलों को चलाने वाले दिहाडी श्रमिक भी गाँवों को वापस चले गए हैं, वह भी नहीं आ पा रहे। बिस्किट बनाने वाली कंपनियां, होटलों आदि के बंद होने से मैदे की मांग कम आ रही, इसलिए मिलें नहीं चल रही हैं। इसका हानि किसानों को झेलना पड़ रहा है।

सीतापुर में रहने वाले मिल मालिक उमेश अग्रवाल कहते है, सरकार ने तालाबंदी के समय कृषि उत्पादों को मंडियों में ले जाने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाई है, लेकिन पुलिस की दहशत और झंझट से बचने के लिए यह छोटे व्यापारी गांवों में किसानों का माल ही नहीं खरीद रहे हैं। धंधा बिल्कुल मंदा चल रहा है, बंदी के कारण माल कोई गाड़ी वाला ले जाने को तैयार ही नहीं होता।

जब से तालाबंदी शुरु हुआ है खरीदारी बंद है, बाराबंकी जिले के देवरा गाँव में रहने वाले छोटे व्यापारी मोहित बाजपेई अपनी समस्या रखते हैं। शाहजहांपुर की गल्ला मंडी के कोषाध्यक्ष कुलदीप गुप्ता बताते हैं, अब सब कुछ बंद चल रहा है, तो बाजार में मंदी आ गई है। हम यहां से मालगाडप़र गेहूं लादकर दूसरे राज्यों को गेहूं भेजते थे, लेकिन कहीं से कोई मांग ही नहीं आ रही।

सरकार ने खरीद केन्द्र तो आरम्न्भ कर दिए हैं, लेकिन श्रमिक न होने की बात कह कर मंडियों में किसानों से गेहूं की खरीद रुकी हुई थी। सिरसा जिले गोदीकां गांव में रहने वाले राकेश कुमार सहारन ने बताया कि अभी उनके यहां गेहूं की कोई खरीद नहीं हो रही, आढ़ती कहते हैं कि उनके पास श्रमिक नहीं हैं, उन्हें दस से पंद्रह दिन का समय और चाहिए। कपास बोने का समय है, किसान का गेहूं घरों में या खेतों में पड़ा है, जेब में पैसा नहीं, आगे के कार्य रुके पड़े हैं।

राकेश कुमार के पास कुल 71 क्विंटल सरसों है, लेकिन वह तीन बार में सिर्फ 33 क्विंटल ही बेच पाएं हैं, बार-बार ले जाने का भाड़़ा पड़ा सो पृथक। वह कहते हैं, “नमी के नाम पर धांधली हो रही है, तौल के नाम पर तीस रुपये से लेकर पचास रुपये तक ले रहे हैं। ” उधर, 23 अप्रैल से सरकार से बातचीत के बाद आढ़तियों ने खरीदारी आरम्न्भ की लेकिन विलम्ब से आरम्न्भ होने से किसानों को बहुत हानि हुआ है।

मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में पैदा हुए कुल गेहूं की शत-प्रतिशत खरीद की बात कही है, लेकिन गेहूं की कटाई पहले आरम्न्भ होने और सरकारी खरीद केन्द्रों के देर से खुलने के बीच किसानों को अपनी उपज का बड़ा भाग जरूरतें पूरी करने के लिए कम दर पर बाजार में मजबूरी में बेचना पड़ा। तालाबंदी के बीच ही एमपी के किसानों के सिर पर एक नया संकट आ पड़ा है, कांग्रेस सरकार ने किसानों से कर्जमाफी की बात कही थी, लेकिन कर्जमाफी का पैसा बैंकों या सोसाइटीज तक पहुंच ही नहीं पाया, तद्पश्चात इन सोसाइटीज ने अब किसानों से वसूलना आरम्न्भ कर दिया है।

जब किसान सोसाइटी को गेहूं बेचते हैं तो उनके कर्ज का पैसा काट कर ही उनकी अदायगी की जा रही है। कमलनाथ सरकार ने कर्जमाफी की जो घोषणा की थवह पूरी नहीं हुई, अब किसानों से उगाही की जा रही है। दूसरे किसानों के पास नकदी की कठिनाई है, इसलिए किसान मंडियों में कम दर पर गेहूं बेच दे रहा है। मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के गांव बांकोट में रहने वाले भगवान मीना बताते हैं। गेहूं की बंपर पैदावार से उत्पादन के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। एपीडा वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2018-19 में 424.9 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात किया।

हरियाणा में गेहूं खरीद केन्द्र तो आरम्न्भ हो गए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिकों के पलायन कर जाने से खरीद ठप है। गेहूं की फसल न बिक पाने से आगे की बुआई में भी देर हो रही है। किसानों को आ रही कठिनाईयों के विषय में कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान कहते हैं कि किसान अनिश्चितता में हैं। पंजाब-हरियाणा के किसान अपना पूरा गेहूं सरकारी सेंटरों पर ही बेचते हैं, अब कटाई और बेचने में विलम्ब से किसान की समस्या और बढ़ गई है। यदि किसान फसल को जैसे-तैसे काट भी लेता है, फिर भी इस स्थिति में गेहूं को सुरक्षित रखने में भी व्यय बढ़ जाएगा।

पहले निरंतर वर्षा से गेहूं की चमक कम होने के साथ ही उसमें बढ़ी नमी से किसानों की समस्या और बढ़ गई है। यदि किसी किसान के गेहूं में तय मानक से अधिक की नमी मिल रही है तो उसे वापस लेकर जाना पड़ रहा है। सरकार ने अभी नमी की मात्रा 12 प्रतिशत कर दी है, लेकिन इस बार लागातार वर्षा होने से गेहूं में नमी कम ही नहीं हो रही।

यदि गेहूं में नमी की मात्रा अधिक होती है तो किसान को उसे वापस लेकर जाना पड़ता है। पंजाब का तापमान 35 डिग्री से ऊपर बढ़ ही नहीं रहा, पंजाब के फजिल्का में आढ़ती और फेडरेशन ऑफ आढ़ती पंजाब के सचिव संजीव कुमार बताते हैं।  बेच न पाने के कारण खेतों में खुले पड़े गेहूं को सहेजने को लेकर चिंतित पंजाब के किसान और भारतीय किसान यूनियन के सदस्य बलिविंदर सिंह बाजवा कहते हैं, खेतों में गेहूं काट कर बैठे हैं, परमिशन नहीं आ रही, प्रायः प्रत्येक दिन वर्षा हो रही है, सरकार हमें गेहूं को संभालने की स्वतंत्रता दे।

बिगड़े मौसम के मिजाज से गेहूं में नमी पर पंजाब के एग्रीकल्चर कमिश्नर डॉo बलविंदर सिंह सिद्धू कहते हैं, हम चाहते हैं कि जितना गेहूं आए वह तुरंत चला जाए। गेहूं में 12 प्रतिशत से अधिक नमी पर उसे भंडार नहीं किया जा सकता। पहले खरीद केन्द्रों पर एक दिन में आठ लाख टन गेहूं आ जाता था, इस बार पांच दिन में आठ लाख टन गेहूं आया है। कोरोना की दहशत के बीच खरीद केन्द्रों पर सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने खरीद केन्द्रों पर एक दिन में छह किसानों के आने की संख्या निर्धारित कर दी है।

इस पर फजिल्का के किसान नृपेन्द्र सिंह कहते हैं, सरकार ने जो यह व्यवस्था की है कि किसान एक बार में पचास क्विंटल लाएगा उससे अधिक कठिनाई हो रही है। हम कंबाइन मशीन से अधिक कटाई करते हैं, हमें टोकन पचास कुंतल का ही दिया जाता है, अब जो बचेगा वह या तो खेत में रखें या घर में रखें। दो दिन पहले वृष्टि भी हुई, नमी आ जाएगी और रंग बदल जाएगा, इसका भी डर है। किसान नृपेन्द्र सिंह आगे कहते हैं, जहां एक बार किसानों को अपना माल बेचने के लिए सरकारी खरीद केन्द्र जाना होता था वहां चार चक्कर लेगेंगे।

धान की पौध के साथ हरे चारे को बोना है। किसान के प्रत्येक कार्य लटक जाएंगे। किसान जब अपना अनाज लेकर आढ़ती के पास जाते हैं तो आढ़ती को गेहूं तुलवाकर किसान के खाते में 48 घंटे में ही पैसा स्थानांतरण करना होता है। इसके लिए उसे सरकार से 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता है। फजिल्का में आढ़त चलाने वाले संजीव बताते हैं, पहले दो-दो हजार बैग की खरीद करते थे, पर आज पांच सौ बैग देते हैं।

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