नई दिल्ली – कोरोना विषाणु महामारी के कारण चीन के बाहर अपने कारखाने ले जाने का प्रयास कर रही विदेशी कंपनियों को भारत में नए विनिर्माण केन्द्र स्थापित करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभाने के लिए तैयारी की जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, नई दिल्ली ने भारत में लगभग ५,00,000 हेक्टेयर भूमि की पहचान की है ताकि भारत में नए विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिए विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निमंत्रण दिया जा सके।
सूत्रों ने कहा कि विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भूमि कोष की पहचान प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात व महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में की गई है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस योजना के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि बड़े हिंदी भाषी राज्यों, जहाँ श्रमिकों की सहज उपलब्धता है, में भूमि की पहचान की कोई पहल की गयी हो।
यदि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभा सकती है, तो यह गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा बढ़ावा देगा, जो कि कोरोना विषाणु महामारी के कारण मंदी के दौर में फंसी हुई है।
कोरोनावायरस का संक्रमण भले ही भारत में लंबे तालाबंदी के कारण मंदी का कारक बना हो, लेकिन इससे एक बड़ा लाभ मिलने की संभावना है। कोरोना के कारण विश्व भऱ की सभी कंपनियां चीन की बनिस्पत कहीं और अपनी विनिर्माण इकाई को स्थापित करने की योजना बना रही हैं। इसे भारत सरकार एक बड़ा अवसर मानते हुए इन कंपनियों को लुभाने में जुट गई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार अकेले अमेरिका की १,000 कंपनियों को भारत में बुलाने की योजना पर केंद्र सरकार कार्य कर रही है। इन कंपनियों में अमेरिका की दिग्गज चिकित्सा उपकरण कंपनी एबॉट लैबोरेट्रीज भी सम्मिलित है।
सरकारी अधिकारियों के अनुसार सरकार ने अपने विदेशी मिशन के माध्यम से १,000 से अधिक अमेरिकी कंपनियों से अप्रैल में संपर्क साधा है। सरकार ने इन कंपनियों को यह सूचना दी कि यदि वे चीन की बनिस्पत भारत में आती हैं तो उन्हें क्या छूट मिल सकती हैं।
इनमें से भी भारत की दृष्टि सबसे अधिक चिकित्सा उपकरण, फूड प्रोसेसिंग इकाई, टेक्सटाइल, चमड़े और ऑटो पार्ट्स निर्माण करने वाली कंपनियों पर हैं। आरंभिक बातचीत में कुल 550 उत्पादों के निर्माण में जुटी कंपनियों को भारत आने का निमंत्रण दिया गया है। वास्तव में कोरोना के संकट के बाद से ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप निरंतर चीन पर मौखिक वार कर रहे हैं। कई बार वह कोरोना को चीनी विषाणु भी कह चुके हैं।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध का संकट गहरा सकता है। ऐसी स्थिति में अमेरिकी कंपनियां यदि चीन से किसी और देश का रुख करती हैं तो भारत सरकार की दृष्टि अपने देश को सुदृढ़ विकल्प के रूप से प्रस्तुत करने पर है।
जापान ने भी अपनी कंपनियों को चीन से बाहर हस्तांतरण के लिए 2.2 अरब डॉलर की सहायता राशि जारी भी कर दी है। इसके अतिरिक्त यूरोपीय यूनियन के देश भी चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के उपायों पर विचार कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिकी कंपनियों से विस्तार से बातचीत की है और पूछा है कि वह भारत में किन सुविधाओं की अपेक्षा रखती हैं। इस पर्यंत कई कंपनियों ने श्रम कानून में सुधार की बात कही है। यही नहीं भारत सरकार राज्यों के साथ मिलकर भूमि अधिग्रहण जैसे विषयों पर पहले ही कार्य आरम्न्भ कर चुकी है। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में छपी कई रिपोर्टों में भी पढ़ने में आया है कि सरकार विदेशों से आने वाली कंपनियों को लग्जमबर्ग से दोगुनी भूमि देने के लिए तैयार है।