नई दिल्ली – पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह नहीं रहे। रविवार की सुबह 6:55 बजे उन्होंने अंतिम सांसें लीं। वह 82 वर्ष के थे। सिंह बीते कुछ समय से बीमार थे।
25 जून को उन्हें दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम का इलाज चल रहा था यानी अंगों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था।
सिंह के निधन पर सोमवार प्रातः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुख जताया है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा- जसवंत सिंह ने देश की अच्छे से सेवा की। पहले सैनिक के नाते फिर राजनीति में लंबे जुड़ाव के जरिए।
उन्होंने आगे कहा- अटल सरकार में उन्होंने महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले। वित्त, रक्षा और विदेश मामलों की विश्व में अपनी तगड़ी छाप छोड़ी। मैं उनके जाने से दुखी हूं। उन्हें राजनीति और समाज के मामलों पर उनके अनूठे दृष्टिकोण के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने भाजपा को सुदृढ़ बनाने में भी योगदान दिया। मैं सदैव हमारी बातचीत को याद रखूंगा। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।
राजस्थान के बाड़मेर में 3 जनवरी 1938 को जन्मे सिंह राजपूत परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उन्होंने अजमेर के मायो महाविद्यालय से बीए, बीएससी के अतिरिक्त भारतीय सैन्य अकादमी (देहरादून और खड़गवासला) से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त की थी। 15 वर्ष की आयु में वह भारतीय सेना में चले गए थे।
1960 के दशक में वह सेना में अधिकारी थे, जबकि 1980 में वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। बाद में 1996 में अटल सरकार में वित्त मंत्री बने। यद्यपि, 15 दिन ही इस पद पर रह पाए थे, क्योंकि सरकार गिर गई थी। आगे 1998 में जब पुन: वाजपेयी सरकार बनी, तो उन्हें विदेश मंत्री का उत्तरदायित्व मिला।
बतौर विदेश मंत्री सिंह ने भारत-पाकिस्तान के संबंध सुधारने के लिए बहुत कोशिशें की थीं। 2009 में विभाजन पर उनकी किताब आई थी। नाम था- ‘जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेस’। भारतीय जनता पार्टी उनके विचार से सहमत नहीं थी। उन्हें भाजपा छोड़ना पड़ा। लाल कृष्ण आडवाणी के प्रयासों के बाद वह पार्टी में वापस आए। पर दरकिनार ही रहे।
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बाड़मेर से भाजपा ने सांसद का टिकट नहीं दिया
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बाड़मेर से भाजपा ने सांसद का टिकट नहीं दिया। वे निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। अनुशासनहीनता के आरोप पर उन्हें फिर छह वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। इसी वर्ष उन्हें सिर में चोट लगी जिसके बाद से जसवंत सिंह कोमा में ही थे।
1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे। तब जसवंत ने ही अमेरिका से बातचीत का मामले को पटरी पर लाया। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।