गणतंत्र दिवस के अवसर पर 112 विभूतियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें से एक नाम बिहार की राजकुमारी देवी का भी रहा। उन्हें पद्मश्री से सुशोभित किया गया।
उत्तरी बिहार के तिरहुत प्रमंडल के मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव की रहने वाली राजकुमारी देवी को यह राष्ट्रीय सम्मान कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्राप्त हुआ है। वह बिहार की पहली महिला कृषक हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला है। राजकुमारी देवी न सिर्फ खेती करती है वरन् उन्होंने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर स्वयं सहायता समूह की स्थापना और परिचालन भी किया है। उनके इस कदम से सैकड़ों महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हैं।
कृषि से जुड़े ज्ञान और उनकी बुद्धिमता को देखकर गांव वाले उन्हें प्यार से किसान चाची के नाम से जानते हैं। आज वह इसी नाम से देश-दुनिया में भी प्रचलित हैं। राजकुमारी देवी ने महिला किसान के तौर पर सामाजिक बाधाओं को दरकिनार कर कृषि के क्षेत्र में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई है। एक साधारण महिला से किसान चाची होना और पद्मश्री जैसा सम्मान पाने तक का यात्रा उनके लिए सरल नहीं था। परन्तु आज वह सभी महिलाओं के लिया अनुकरणीय हैं।
निर्धन परिवार में जन्मीं राजकुमारी देवी का विवाह एक किसान परिवार में हुई थी। विवाह के कुछ वर्षों बाद ही उन्हें पति के साथ घर से बंटवारा कर अलग कर दिया गया। बंटवारे के बाद मिले ढाई एकड़ भूमि से अपने परिवार का पालन पोषण करना राजकुमारी देवी और उनके पति के लिए दुष्कर था। अत: राजकुमारी देवी ने निर्णय किया कि वह घर में ना रह कर भूमि को ही जीविकोपार्जन का साधन बनाएंगी। इसके लिए उन्होंने खेतों में कार्य करना आरम्न्भ किया। बिहार जैसे रूढ़िवादी राज्य में जहाँ अधिकतर महिलाएं घूंघट में ही रहती हैं यह एक बड़ा कदम था।
राजकुमारी देवी को कृषि सम्बंधित ज्ञान शुन्य के सामान ही था इसलिए उन्होंने समस्तीपुर स्थित पूसा कृषि विद्यालय से उन्नत कृषि का प्रशिक्षण प्राप्त किया। तत्पश्चात अपने खेत में ओल और पपीता लगाया। खेतों में लगे ओल को उन्होंने बाजार में बेचने की जगह आचार बनाया। आचार बेचने से उन्हें अच्छी आय होने लगी। गांव की महिलाओं को जब इसका पता चला तो वह भी राजकुमारी देवी से सीखने आने लगीं। फिर उन्होंने दूसरी महिलाओं को भी खेती और आचार बनाना सिखाया। इस तरह सब उन्हें लोग किसान चाची कहने लगे।
किसान चाची बनते ही आसपास के पुरुष किसान भी उनसे परामर्श लेने और उनसे अपने घर की महिलाओं को भी कृषि के गुर सिखाने की अनुशंसा करने लगे। फिर क्या था किसान चाची गांव-गांव जाकर महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह बनाने लगी। वह साइकिल से हर दिन 40-50 किलोमीटर का यात्रा तय करके महिलाओं और दूसरे किसानों को खेती करना, फूड प्रोसेसिंग की बारीकियां और मूर्ति बनाना सिखाने लगीं।
2003 में सरैया मेले में उनके कार्य को सराहा गया। 2007 में किसानश्री अवार्ड मिला तो नाम राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा। पद्मश्री मिलने को किसान चाची ग्रामीण महिलाओं का सम्मान मानती हैं। राजकुमारी देवी ने कहा, ‘महिला सशक्तीकरण तभी होगा जब महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ अपना रास्ता स्वयं बनाने लगेंगी।’
अब तक किसान चाची चालीस से अधिक स्वयं सहायता समूह बना चुकी है।