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क्या प्रत्येक वर्ष हमें इसी तरह की तालाबंदी में जाना चाहिए?

by रंजू सिंह
अप्रैल 27, 2020
Reading Time: 2 min

कोरोना विषाणु के प्रसार को रोकने के लिए 24 मार्च को भारत भर में लगाया गया राष्ट्रव्यापी तालाबंदी – जो सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी अपनी तरह की सबसे बड़ी तालाबंदी है – जिस के कारण करोड़ो लोगों को असुविधा, दर्द और भूख की मार झेलने पर विवश होना पड़ा है, का एक अविश्वसनीय सकारात्मक पहलू सामने आ रहा है।

दिल्ली, जिसकी गिनती विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित महानगरों में की जाती है, के निवासियों के बीच वायु की गुणवत्ता के सूचकांक को लेकर उत्साह और आनंद है। लोग अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे की यह सत्य है। भारत की राजधानी में, पिछले कुछ दशकों में यह सबसे प्रदुषणरहित वातावरण है।

तालाबंदी लगाए जाने के बाद शहर की हवा साफ है और आसमान नीला। यमुना का पानी काला नहीं दिख रहा। आप रात्रि प्रहर में आकाश में चमकते सितारों को स्पष्टता से देख सकते हैं। उत्साहित पक्षियों का कोलाहाल कईयों के लिए, जिनका गाँव से सम्बन्ध नहीं है, पहला अनुभव है।

जनवरी 2020 में बिहार की राजधानी पटना का वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 पार हो चुका था जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। पिछले कुछ दिनों में यह 40 – 46 के बीच है जो कि एक आदर्श और सर्वोतम स्थिति है। पटना की ऐसी प्रदुषण मुक्त स्थिति आज की पीढ़ी ने पहली बार देखी है।

देश के अन्य महानगरों – मुंबई व कोलकाता से भी लोग ऐसे ही सुखद अनुभवों को साझा कर रहे हैं।

प्राणघातक वैश्विक महामारी कोरोना विषाणु के कारण पूरे देश में तालाबंदी हुए एक माह से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। सड़कों पर न गाड़ियां दौड़ रही हैं न कारखानों की चिमनियां विषाक्त धुआं उगल रही हैं।

इन स्थानों पर तालाबंदी से पहले की तुलना में बहुत कम प्रदूषण अंकित किया गया है। कुछ स्थानों पर तो वायु गुणवत्ता में प्रदुषण न के बराबर है।

भारत सरकार की ओर से संचालित वायु गुणवत्ता, मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली के निदेशक गुफरान बेग ने बताया कि दिल्ली में तालाबंदी से पहले जो आठ सबसे अधिक प्रदूषित स्थान थे वह अब प्रदुषणरहित “ग्रीन जोन” बन गए हैं। उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में विनोबापुरी, आदर्श नगर, वसुंधरा, साहिबाबाद, आश्रम सड़क, पंजाबी बाग, ओखला और बदरपुर सम्मिलित हैं। बेग ने तालाबंदी से पहले और इसके पर्यंत का दिल्ली के वायु प्रदूषण का व्यापक मानचित्र भी साझा किया।

आर्थिक राजधानी मुंबई के वर्ली, बोरीवली और भांडुप क्षेत्रों में मुंबई महानगर क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों कि तुलना में स्वच्छ हवा दर्ज की गई है। दिल्ली और मुंबई के प्रदूषण के इन हॉटस्पॉट में मुख्य रूप से औद्योगिक गतिविधियां या यातायात के कारण अधिक प्रदूषण होता था। इन क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सूचकांक अब ‘ अच्छी’ या ‘ संतोषजनक’ श्रेणी में आता है। एक्यूआई 51-100 के बीच ‘ संतोषजनक’ , 101-200 के बीच ‘ मध्यम’ , 201-300 के बीच ‘ खराब’ , 301-400 के बीच ‘ बहुत खराब’ और 401-500 को ‘ गंभीर’ माना जाता है।

यात्रा ने हवा में पीएम 2.5, पीएम 10 और एनओ2 जैसे भयंकर प्रदूषकों की तुलना तालाबंदी से पहले एक से 21 मार्च और तालाबंदी के समय 25 मार्च से 14 अप्रैल से भी की है। यह विश्लेषण दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद में किया गया है। दिल्ली में तालाबंदी के समय पीएम 2.5, 36 प्रतिशत तक घटा, जबकि पीएम 10 में 43 प्रतिशत की कमी आई है और गाड़ियों से निकलने वाली नाइट्रस ऑक्साइड में 52 प्रतिशत की कमी आई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी राष्ट्रीय राजधानी में पीएम 2.5 के स्तर में 46 प्रतिशत की कमी और पीएम 10 के स्तर में 50 प्रतिशत की कमी दर्ज की है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों से भी पता चलता है कि नदियों में प्रवाहित जल की गुणवत्ता में भी अभूतपूर्व सुधार हुआ है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ यह नदियाँ औद्योगिक शहरों से गुजरती है। 1986 से, जब गंगा “एक्शन प्लान” की कल्पना की गई थी, केंद्र सरकार ने लगभग 5000 करोड़ रुपये खर्च करके सैकड़ों करोड़ भारतीयों द्वारा पवित्र मानी जाने वाली नदी की सफाई की है, लेकिन बहुत कम प्रभाव हुआ।

भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी सुसंता नंदा ने ट्विटर पर ऋषिकेश में पवित्र गंगा नदी के एक वीडियो को साझा किया और कहा कि, “और हम सब स्वर्ग की तलाश में थे …।”

Ganga at Rishikesh, near the Lakshman jhoola on 24.04.2020.🙏
And all along we were searching for heaven…. pic.twitter.com/o6HzpNsFGC

— Susanta Nanda IFS (@susantananda3) April 26, 2020

एक अन्य वीडियो में उन्होंने हरिद्वार में कलकल बहती गंगा के निर्मल जल की तस्वीर साझा की है

Ganga at Har Ki Pauri, Haridwar🙏

Purified it self to take up our sins when we take a holy dip after lockdown …..

VC- WA fwd. pic.twitter.com/mfuB2mdXw7

— Susanta Nanda IFS (@susantananda3) April 27, 2020

एक लंबे समय के बाद, नदियों के जल स्नान के उपयुक्त हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नदी में प्राकृतिक जीवाणुओं की उपस्थिति नहीं है, तो इस समय जल भी सुरक्षित रूप से सेवन भी किया जा सकता है।

सिर्फ नदियां ही नहीं, वन्यजीव भी मानो प्रकृति में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। हाल ही में, कुछ नागरिकों ने अपने अपने शहरों के आवासीय कॉलोनी में घूमते हुए मोर और हिरण की कुछ तस्वीरें साझा की थी। बगीचों में भी भ्रमरों, मधुमक्खियों, पक्षियों यहां तक कि गिलहरियों को देखा जा सकता है।

I have lived in Mumbai for two decades but never ever saw a peacock.

Soon we may see Gods walking on the (now turned blue and silver) JUHU beach. pic.twitter.com/pd1sXB7RtC

— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) April 21, 2020

कुछ भूकंपीय वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव गतिविधियों में सबसे अधिक कमी हो गई है। कोरोनो विषाणु के प्रतिबंधों के कारण कम यातायात और विनिर्माण होने से इस वर्ष कार्बन डाईऑक्साइड CO2 उत्सर्जन में वृद्धि पहले की अपेक्षा कम होने की आशंका है।

मानवता के लिए यह कोरोना संकट की स्थिति से संघर्ष करने का ही नहीं अपितु यह सीखने का भी समय है कि क्या हम एक प्राकृतिक रूप से एक स्वस्थ तथा स्वच्छ दुनिया बना सकते हैं।

प्रकृति मुस्कुरा और बोल रही है क्योंकि मनुष्य अपने घरों में बंद और शांत हो गए हैं। तो क्या चीजें ऐसी ही नहीं रह सकती? क्या हम जीवन का तरीका बदल नहीं सकते और हम उन चीजों पर अधिक ध्यान दे जो हमेशा से थे पर हमने कभी उनकी परवाह ही नहीं की? क्या हमें प्रकृति का समर्थन करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए इसी तरह की तालाबंदी में जाना चाहिए?

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