पटना उच्च न्यायालय ने मद्य निषेध के मुकदमों को निपटाने के लिए 74 स्पेशल न्यायालय के गठन को मंजूरी दे दी है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह इन स्पेशल कोर्ट्स के लिए स्टाफ की संख्या भी तय करे, तो उच्च न्यायालय ने इसकी जिम्मेदारी सरकार को दे दी। उच्च न्यायालय ने सरकार से कहा है कि वह स्पेशल न्यायालय में जरूरी स्टाफ की संख्या तय करके इनकी नियुक्ति का प्रस्ताव भेजे। सरकार यह प्रस्ताव तैयार कर रही है। इधर, गुरुवार की सुनवाई के समय न्यायालय ने सरकार से मद्य निषेध के मुकदमों को निपटाने की कार्ययोजना को कार्यान्वयन में लाने की कार्रवाई का ब्योरा मांगा। इस मामले की सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।
हाईकोर्ट ने मद्य निषेध से जुड़े मुकदमों की बड़ी संख्या पर सख्त आपति जताया था। 21 नवंबर को सरकार से इसको कम करने का फौरी उपाय पूछा था। दूसरे दिन सरकार ने न्यायालय को बताया था कि यह सिर्फ स्पेशल न्यायालय से ही संभव है और सरकार ने 74 स्पेशल न्यायालय बनाने की बात तय करते हुए इसकी अनुमति उच्च न्यायालय से मांगी हुई है। सरकार ने 9 सितंबर 2019 को स्पेशल न्यायालय के गठन के लिए उच्च न्यायालय से याचना की थी। उच्च न्यायालय ने इसकी मंजूरी दे दी है। महाधिवक्ता ललित किशोर ने पूछे जाने पर मंजूरी की पुष्टि की। इधर, मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश डॉ.अनिल कुमार उपाध्याय की बेंच ने जनहित याचिका को सुनते हुए मुकदमों को कम करने के लिए सरकार द्वारा बनाई गई कार्ययोजना को कार्यान्वयन में लाने के लिए की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा। इस पर अगली सुनवाई 17 दिसंबर को सकती है।
बिहार सरकार ने 1 अप्रैल 2016 को देसी तथा 5 अप्रैल 2016 को सभी तरह की शराब पर पाबंदी लगा दी। सरकार कहती है-शराबबंदी से बड़े फायदे हुए, हो रहे हैं। अपराध-दुर्घटनाएं तो घटी ही है, लोगों का जीवनस्तर ऊंचा उठा है। डेवलपमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट व जेंडर रिसोर्स सेंटर तथा जगजीवन राम शोध संस्थान की सर्वेक्षण रिपोर्ट मद्य निषेध के बाद आए बदलावों की गवाही है। इसके अनुसार हर तरह के अपराध में कमी आई है।