पटना – दो दिन पूर्व बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना विषाणु के नमूनों की जांच में “असहयोग और कोताही करने के” आरोप में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. सत्येंद्र नारायण सिंह को निलंबित कर दिया था। उन पर यह आरोप मढ़ा गया कि वे कोरोना की जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे।
स्थानीय समाचार माध्यमों और सूत्रों से पता चला है कि मामला कुछ और ही था।
डॉ. सत्येंद्र नारायण सिंह से कोरोनावायरस की जांच की जिस रैपिड एंटीबॉडी किट के लिए विभाग से प्रमाण मांगा गया और निलंबन के कारणों में यह भी इसे भी बताया गया, उसी के 50 हजार किट क्रय हेतु बिहार मेडिकल सर्विसेस एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) ने निविदा निकाला है।
कोरोनावायरस के रोगियों की शीघ्र जांच हो जाए इसके लिए डॉ सिंह ने यह किट क्रय करने का परामर्श वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के समय मुख्यमंत्री को दी थी जो संभवतः विभाग के शीर्ष नेतृत्व को अच्छी नहीं लगी और आनन फानन उनके निलंबन का आदेश सुना दिया गया।
वैसे अपने उत्तर में डॉ सिंह ने नौ वैज्ञानिक प्रमाण दिए हैं। इस किट की मान्यता भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद् और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे ने भी दी।
विशेषज्ञों की राय में आज की तिथि में रैपिड एंटीबॉडी किट परीक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इस किट से 10 मिनट में संक्रमण होने या न होने की पुष्टि हो जाती है। इसके अतिरिक्त इस जांच से संदिग्ध रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी पता चल जाता है। जिसकी रोग प्रतिरक्षा क्षमता अच्छी होती है उसे कोरोना का संक्रमण होने का संकट बहुत कम रहता है।
इस जांच में संक्रमण मिलने पर पॉलिमरेज चेन रिऐक्शन (PCR) मशीन से पुष्टिकारी परीक्षण कराई जा सकती है। इससे शीघ्र अधिकाधिक संक्रिमित रोगियों की पहचान हो सकती है।
इतना ही नहीं “रियल टाइम” पीसीआर मशीन से जांच करने में सात से आठ घंटे लग जाते हैं।
डॉ सिंह ने इस किट से संबंधित अपने उत्तर में विभाग को नौ वैज्ञानिक प्रमाण पीएमसीएच के प्राचार्य के माध्यम से दे चुके हैं।
स्पष्टीकरण के रूप में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहा कि डॉ सत्येंद्र नारायण सिंह ने कोरोना महामारी की इस घड़ी में न केवल अपने कार्य में असावधानी बरती, बल्कि इसकी जांच के संबंध में भ्रामक सूचना भी दी।