नई दिल्ली – भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि देश ने जिन जिलों में बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 100 या इससे अधिक मामले लंबित हैं उन जिलों में इन मामलों के सुनवाई के लिए दो महीने के अन्दर विशेष पॉक्सो (POCSO) कोर्ट का गठन किया जाए।
केंद्र सरकार इन अदालतों के गठन में आने वाला खर्च वहन करेगी।
मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी।
इन विशेष न्यायालयों में सिर्फ पॉक्सो के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई होगी। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है ।
पिछले 12 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने देश में बच्चों के यौन शोषण की बढ़ती घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लिया था।
मुख्य न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वो एक जनवरी से लेकर अब तक बच्चों के साथ हुए यौन शोषण के मामलों में दर्ज एफआईआर (FIR)और की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट तैयार करें।
सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी उच्च न्यायालयों से आंकड़े मंगवाए थे। इन आंकड़ों के मुताबिक 01 जनवरी से 30 जून तक देशभर में बच्चों के साथ यौन शोषण के 24 हजार मामले दर्ज किए गए हैं।
उत्तरप्रदेश में सबसे ज़्यादा 44376 पॉक्सो केस लंबित हैं। मध्य प्रदेश 2389 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीँ ओडिशा में चार्जशीटेड मामलों में से महज 12 फीसदी में सज़ा हो पाई है।
इस मामले में कोर्ट की मदद कर रहे एमिकस क्यूरी (Amicus curiae)वी गिरी ने पोक्सो कोर्ट में चल रहे सभी मामलों के त्वरित सुनवाई की मांग की थी।
गिरी ने कहा था कि अगर बच्चों से यौन शोषण के मामलों को शीघ्र निपटाना है तो आधारिक संरचना, न्यायाधीशों और अदालतों की संख्या में वृद्धि करनी होगी ।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की ने एमिकस क्यूरी से 01 जनवरी, 2019 से पहले के बच्चों से दुष्कर्म के मामलों का विवरण व आंकड़ा न्यायालय को देने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश ने एमिकस क्यूरी को कहा था कि हमें पिछले छह महीनों के आंकड़े नहीं चाहिए, बल्कि हम ये जानना चाहते हैं कि देश में उससे पहले क्या थे?
यदि उससे पहले के आंकड़े मिले तो हम मामले की स्थिति को सही से परख पाएंगे।