शिवहर / मोतिहारी / सीतामढ़ी – बिहार क्षत्रिय परिषद् व राजपूत कल्याण समिति के सयुंक्त तत्वाधान में शिवहर, मोतिहारी व सीतामढ़ी जिलों में वीर राजपूत सम्राट मिहिर भोज की जयंती मनाई गयी। इस बीच साहित्यिक परिचर्चा एवं गोष्ठी कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। तीनों जिलों में कार्यक्रम का आयोजन क्षत्रिय परिषद के अध्यक्ष संजीव सिंह व राजपूत कल्याण समिति के सयोंजक शिलादित्य सिंह द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने सम्राट मिहिरभोज के चित्र पर पुष्प अर्पण कर नमन किया। शिवहर में इस अवसर पर हवन पूजन भी किया गया।
सीतामढ़ी में मुख्य संचालक डा० अजय सिंह परिहार ने राजपूत प्रतिहार (परिहार) वंश व कुल के विषय में परिचर्चा में भाग लेते हुए बताया कि ‘प्रतिहार’ का अर्थ रक्षक या द्वारपाल से है। मनुस्मृति में प्रतिहार, प्रतीहार, परिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। प्रतिहार राजपूत शाखा के मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण माने जाते हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार और कालांतर में परिहार कहलाएं। कुछ नई पुस्तकों में इन्हें अग्निवंशी बताया जा रहा है, पर ये मूलतः सूर्यवंशी हैं।
उन्होंने मिहिर भोज के ऐतिहासिक चरित्र का विस्तृत वर्णन करते हुए बताया कि अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिरभोज को अरबों का सबसे बड़ा शत्रु बताया है, साथ ही मिहिरभोज की महान सेना की प्रशंसा भी की है। इसी पुस्तक में सम्राट मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राष्ट्रकूट के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बतायी है।
915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल- मसूदी ने अपनी पुस्तक मरूजुल महान में भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का चिन्ह “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतना भय व्याप्त था कि वे वराह यानि सूअर से नफरत करते थे।
सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को परास्त कर समस्त सिन्ध को प्रतिहार साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। अरबों ने सिन्ध के मंसूरा और मुलतान दो स्थानों पर मिहिर सेना से बचाव के लिए अनमहफूज नामक गुफाएं बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे। मिहिर भोज ने अपने सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर अपने साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पहुंचा दी, और इसी प्रकार भारत को अगली कई शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था।
मोतिहारी कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए शिक्षक रामचंद्र सिंह ने यह आपति जताई कि दुसरे समुदायों के लोग अनुचित तरीके से मिहिर का नाम अपने नाम से जोड़ रहे हैं। कुछ ऐसे ही प्रयास महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि के नामों के साथ हो रहा है जिससे हिन्दू समाज के भीतर ही सामजिक वैमनस्य उत्पन्न होने के संकेत हैं। इतिहास के साथ छेड़खानी नहीं की जानी चाहिए। इससे अच्छा है कि ऐसे समुदाय विशेष भी धर्मपरायण कार्य करके वीर गाथाएं अपने नाम लिखवायें। किसी और के गौरवपूर्ण इतिहास को चोरी करके कोई समाज महान नहीं कहला सकता।
वहीँ सामाजिक कार्यकर्ता अजित सिंह ने कहा कि राजपूत सम्राट मिहिरभोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी।
अपने सन्देश में संजीव सिंह ने कहा कि राजपूत परिवारों को अपने बच्चों के चरित्र निर्माण व शिक्षा पर विशेष जोर देना चाहिए। इस अवसर पर उन्होंने हाल के IIT और NEET की प्रवेश परीक्षाओं में सफल होने वाले विद्यार्थिओं का सम्मान किया और आह्वान किया कि जो लोग समर्थ हैं उन्हें स्वयं आगे आकर दान की भावना से नहीं अपितु सहयोग की भावना से वितीय रूप से अशक्त छात्रों की सहायता करनी चाहिए।
विभिन्न कार्यक्रमों में संजय सिंह, धीरेन्द्र सिंह, राम प्रताप सिंह, प्रमोद सिंह, चन्द्र भूषण सिंह, राम बिहारी सिंह, कमल सिंह, पुरुषोत्तम सिंह, ब्रजेश सिंह, राम कुमार सिंह, राजन सिंह, ।श्याम बाबू सिंह, धीरज सिंह, वैद्यनाथ सिंह आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।