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Home विविध धर्म संस्कार

राम मंदिर: 92 वर्ष के पाराशरण बने पहले ट्रस्टी

by मिथिलेश कुमार
फ़रवरी 6, 2020
Reading Time: 1 min

अयोध्या विवाद मामले में हिंदू पक्ष के वकील रहे के । पाराशरण को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में प्रमुख जगह दी गई है। 92 वर्षीय पाराशरण के दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित आवास को ही ट्रस्ट का पंजीकृत कार्यालाय बनाया गया है। पाराशरण के पास वकालत का 60 वर्ष से भी अधिक का अनुभव है। वे दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रहे। वाजपेयी सरकार में उन्हें पद्म भूषण और मनमोहन सरकार में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। वे राज्यसभा के भी मनोनीत सदस्य रहे। अयोध्या मामले पर 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 के बीच 40 सुनवाई हुई थीं। इस पर्यंत हमने पाराशरण की टीम के साथ एक दिन बिताया था। उनके सहयोगी और उच्चतम न्यायालय के वकील भक्तिवर्धन सिंह से बातचीत के आधार पर हमें पाराशरण से जुड़े पहलुओं और अयोध्या केस की तैयारियों के बारे में जानने का मौका मिला। भक्तिवर्धन सिंह बताते हैं, ‘ ‘ 1950 में पहली बार अयोध्या केस प्रवेश हुआ था। 2010 में उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया था। तब से मामला उच्चतम न्यायालय में था। रोज सुनवाई के समय हमारा कार्यालाय लगातार 24 घंटे खुला रहा। 40 लोगों की टीम ने रोज 18 घंटे कार्य किया। 2 अगस्त से हमारा यही रुटीन था। सबसे पहले हिंदू पक्ष की सुनवाई थी। शनिवार-रविवार को अगले सोमवार की तैयारी के लिए हमें अधिक कार्य करना होता था, क्योंकि पूरे सप्ताह में हमारे पास समय नहीं होता था। सैकड़ों कागजों की रोजाना 35 सेट में कॉपी होती थी। करेक्शन लगते थे।, ,

इस केस में पाराशरण जी के साथ-साथ वैद्यनाथन, नरसिम्हा, रंजीत कुमार और उनके सहयोगी श्रीधर पोट्&zwnj टाराजू, मुकुल सिंह, योगेश्वरन, प्रणीत, अमित शर्मा जैसे जाने-माने वकीलों की पैनल लगातार कार्य करती थी। पाराशरण रात 11 बजे तक केस को लेकर ब्रीफ करते थे। इसके बाद सुबह 4 बजे से फिर तैयारी आरम्न्भ कर देते थे। 92 वर्ष के पाराशरण रोज सुनवाई के समय ढाई महीने तक केवल 5 घंटे ही सोते थे। हमें भी सुबह 6 बजे आकर रात की तैयारी की पूरी सूचना देनी होती थी। इन दो महीनों में हमारा नाश्ता पाराशरण जी के घर होता था तो डिनर वैद्यनाथन जी के यहां। पाराशरण-वैद्यनाथन जी का पूरा परिवार इस केस से जुड़ा था। हमें कहना ही नहीं पड़ता था कि हमें क्या चाहिए। घर के सदस्य चाय-नाश्ता-जूस लेकर आते जाते थे। सभी को लगता था कि इस मामले में उन्हें जो पार्ट मिला है, वह निभाना चाहिए।

पाराशरण तो 7 वर्ष की आयु से लगातार रामायण पाठ कर रहे हैं। वे केवल लॉ में नहीं, बल्कि शास्त्रों में भी सिद्धहस्त हैं। वे कहते थे कि शायद इसी वजह से इस आयु में उन्हें राम मंदिर मामले की पैरवी का मौका मिला। पाराशरण की आंखों में बहुत तकलीफ थी। डॉक्टर को दिखाने चेन्नई जाना था, लेकिन केस के चलते नहीं गए। केवल फोन पर ही दवा पूछ ली और केस की तैयारी करते रहे। वे हमसे कहते थे कि आप लोग केस को केस की तरह लिया करो। व्यक्तिगत तौर पर अटैच नहीं होना चाहिए। लेकिन जैसे-जैसे केस की सुनवाई आगे बढ़ती गई, कई बार हमें उनसे कहना पड़ा कि सर आप केस से पर्सनली जुड़ रहे हैं।

हमारे लिए अयोध्या मामला पहले आस्था का विषय था। लेकिन यह प्रोफेशनल कमिटमेंट भी था। कई जगह हमें लगा कि हमें आस्था के अनुसार दलील देनी चाहिए, लेकिन वह हमारे केस को कमजोर करतीं। हम ऐसी दलीलें न्यायालय के सामने नहीं लाए। इस केस में फैक्ट्स बहुत अधिक थे और उतना ही लॉ था। सीपीसी (कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर) की एक पूरी थीसिस थी। ऐसा कोई भी प्रोविजन नहीं था, जो इस केस में लागू न हुआ हो। संविधान के भी बहुत सारे प्रोविजन, एवीडेंस एक्ट सहित बहुत सारे एक्ट से जुड़ी बातें इस केस में थीं।

इस केस में हमारी टीम पर जनभावना का दबाव सबसे अधिक था। लोग हमें ईमेल, वॉट्सऐप, मैसेज से केस के बारे में परामर्श देते थे। जैसे स्कंद पुराण पर हमें लोगों ने बताया कि इसमें क्या उल्लेख है। हमें किस किताब के किस पेज पर कार्य की चीज मिल सकती है, यह भी बताते थे। कई लोग तो हमें डांटते थे कि यह दलीलें होना चाहिए और आप दूसरी दलीलें दे रहे हैं। आपको इस तरह से न्यायालय में अपनी बात रखनी चाहिए। इस तरह के मैसेज का भी हमारे पास अंबार है। हम इससे कई बार चिढ़ जाते थे और कहते थे कि ऐसे लोगों को ही पैरवी करने ले आते हैं। इस पर पाराशरण सर हमेशा कहते थे कि लोग अयोध्या मामले को अपना केस समझते हैं। सुझावों को पॉजिटिवली लो। फिर हमें भी समझ आया कि वे अनुचित नहीं कह रहे हैं।

केस की जुड़ी एक और विशेष बात। न्यायालय के अंदर या बाहर, सभी वकीलों का व्यवहार बहुत ही सहज और सरल होता था। उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अधिकतर सदस्य पाराशरण को गुरु मानते हैं। मुस्लिम पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे राजीव धवन रोज आकर पाराशरण से मिलते और उन्हें नमस्कार करते थे। पाराशरण अपनी सीट से उठकर उन्हें शुभकामनाएं देते थे। दोनों पक्ष एक-दूसरे को बताते थे कि न्यायालय में आपने यह अच्छी दलील दी। वह भी हमें बताते थे कि आज हम कहां श्रेष्ठतर थे। राजीव धवन भी हमारा उत्साह बढ़ाते हुए कहते थे कि आप बढ़िया मेहनत कर रहे हो।

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