
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार को एक घाघ नेता की संज्ञा मिली है। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो पवार अपने स्वार्थसिद्धि के लिए किस तरफ पलटेंगे इसका अनुमान लगाना कठिन ही नहीं असंभव भी है। विधानसभा चुनाव के पश्चात मुख्यमंत्री पद को लेकर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना की राजनैतिक तनातनी के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने मौके का फायदा उठाकर भाजपा को समर्थन देने के लिए सौदेबाजी की पेशकश की थी।
एक ओर पवार जहाँ अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए केंद्र सरकार में कृषि मंत्रालय चाहते थे वहीं दूसरी ओर देवेंद्र फडणवीस के स्थान पर किसी और को मुख्यमंत्री स्थापित करना चाहते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों ही बातों को नहीं माना जिससे पवार और विफर गए और शिवसेना को समर्थन प्रदान करने के अतिरिक्त उनके पास कोई उपाय नहीं बचा।
मोदी नहीं चाहते थे कि महाराष्ट्र जैसे समृद्ध राज्य में जहाँ भ्रष्टाचार की संभावनाएं बहुत अधिक है वहां देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता जिन्होनें पांच वर्ष तक स्वच्छ व भ्रष्टाचारमुक्त शाषण चलाया उन्हें दरकिनार किया जाए। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था। मोदी ने महाराष्ट्र की चुनावी सभाओं में भी फडणवीस के ही नेतृत्व में सरकार बनाने की घोषणा की थी। पवार की बात मानना जनादेश का अपमान होता। एक अन्य मुख्य कारण यह भी था कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद के लिए फडणवीस मोदी की ही खोज रहे हैं।
सुप्रिया सुले को कृषि मंत्रालय देने का अर्थ था एनडीए के अन्य घटक दलों जैसे जनता दल (यूनाइटेड) को उनके मनचाहे मंत्रालयों में भागीदारी देने के लिए विवश होना।
सूत्रों के अनुसार इन दोनों मांगों को मनवाने के लिए शरद पवार ने मोदी और अमित शाह को संदेश दिया था और यह भी कहा था कि वह निर्णय लेने के लिए आवश्यक समय लगने तक महाराष्ट्र की राजनैतिक असमंजसता की स्थिति को बनाये रखेंगे । इन्हीं कारणों से पवार ने स्वयं भाजपा नेतृत्व के विरुद्ध किसी भी तरह के कटुशब्दों का प्रयोग नहीं किया था। वस्तुतः उनके उकसाने से यह बयानबाजी शिवसेना और भाजपा के बीच ही चलती रही । स्वयं पवार वस्तुस्थिति बनाये रखने के लिए मीडिया के बीच मिश्रित और भ्रामिक सन्देश देते रहे ।
विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि अपनी मांगों पर भाजपा की तरफ से सकारात्मक उत्तर न मिलने पर 20 अक्टूबर को जब संसद भवन में पवार ने नरेंद्र मोदी से भेंट की तब भी लगभग 50 मिनट लंबी चली बातचीत में मोदी पवार की दोनों मांगों पर सहमत नहीं हुए।
इस बीच 22 नवंबर को रातोंरात शरद पवार की कथित सोची समझी योजना के अंतर्गत उनके भतीजे अजित पवार ने बागी होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने की पेशकश कर दी। खबरें फैलाई गई कि अजित पवार के साथ 30-35 विधायक टूटकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए तत्पर हैं जिसमें शरद पवार की भी मौन सहमति है। बाद में शरद पवार ने ट्वीट कर भाजपा के साथ राकांपा के गठबंधन की बात नकारते करते हुए कहा कि सरकार में सम्मिलित होना उनके भतीजे अजित का निजी निर्णय है।
सूत्र बताते हैं कि शरद पवार अंतिम क्षण तक आशावान थे कि शिवसेना के धोखा देने के पश्चात असहाय हुई भाजपा उनकी दोनों बड़ी मांगें देर सवेर आसानी से मान लेगी, परन्तु ऐसा हुआ नहीं। अंततोगत्वा शरद पवार ने कांग्रेस और शिवसेना के साथ ही सरकार बनाने का निर्णय किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा मामलों के जानकार दिलीप देवधर कहते हैं कि संघ परिवार में शरद पवार की इन दो मांगों की लेकर काफी गहमागहमी रही, यद्यपि उससे भी अधिक चर्चा इस बात की रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शरद पवार के इन अनैतिक दबावों के आगे नहीं झुके।