शीतला माता देवी का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। शीतला माता के साथ ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी – हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती – रक्त संक्रमण की देवी होते हैं।
यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है।
चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।
शीतला सप्तमी और अष्टमी
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को ठंडा खाने की परंपरा है। इन तिथियों को शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी कहा जाता है। इन दिनों में शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि चेचक, स्मालपॉक्स , चिकनपॉक्स जैसे रोगों से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा की जाती है। श्रद्धालु भोग लगाने के बाद इसी भोजन को ग्रहण करते हैं। पूरे दिन घरों में चूल्हे नहीं जलाए जाते हैं। मान्यता है कि घरों में चूल्हे जलने से या गर्म भोजन खाने से माता शीतला भक्तों से नाराज हो जाती हैं।
कुछ क्षेत्रों में सप्तमी और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी पर ये पर्व मनाया जाता है।
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
पूजा – तिथि व समय
इस वर्ष इन तिथियों की तारीख के संबंध में पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांग में 15 और 16 मार्च को सप्तमी और अष्टमी बताई गई है। जबकि कुछ पंचांग में 16 और 17 मार्च को सप्तमी और अष्टमी बताई गई है।
- शीतला अष्टमी 2020 सोमवार 16 मार्च 2020
- शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – प्रातः 6:46 बजे से सायं 06:48 बजे तक
- शीतला सप्तमी रविवार 15 मार्च 2020
- शीतला अष्टमी 2020 16 मार्च 03:19 बजे से
- शीतला अष्टमी 2020 17 मार्च 02:59 बजे तक
वैज्ञानिक महत्व
अधिकांश हिन्दू त्योहारों की भांति यह पूजा भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रकृति से सम्बंधित है। शीतला सप्तमी और अष्टमी सर्दी और गर्मी के संधिकाल में आता है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है। परम्पनुसार दो ऋतुओं के संधिकाल में खान-पान का विशेष ध्यान रखा जाता है। संधिकाल में आवश्यक सावधानी रखी जाती है तो कई मौसमी बीमारियों से बचाव हो जाता है। इस समय में खान-पान में की गई असावधानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
शीतला माता के व्रत का पालन करने वाले लोग इन दिनों में बासी यानी ठंडा खाना ही खाते हैं। सप्तमी या अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से उन्हें ठंड के प्रकोप से होने वाली कफ संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं।
वर्ष में एक दिन सर्दी और गर्मी के संधिकाल में ठंडा भोजन करने से पेट और पाचन तंत्र को भी लाभ मिलता है। कई लोग को ठंड के कारण बुखार, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित परेशानियां आदि होने की संभावनाएं रहती हैं, उन्हें हर वर्ष शीतला सप्तमी या अष्टमी पर बासी भोजन करना चाहिए। शीतला माता की पूजा करने वाले लोगों इन तिथियों पर गर्म खाना खाने से बचना चाहिए।