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Home Business Analysis

शिवसेना कांग्रेस पहले भी आए हैं साथ, मुस्लिम लीग से भी हुआ है गठजोड़

by मिथिलेश कुमार
नवम्बर 28, 2019
Reading Time: 1 min

महाराष्ट्र में एक महीने तक चली राजनैतिक पैंतरेबाजी के पश्चात अंततः शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है जिसका चेहरा तो उद्धव ठाकरे होंगे पर सत्ता का रिमोट  उनके नए साथी सोनिया गाँधी और शरद पवार के पास होगी। कईयों को यह बेमेल शादी अचम्भे में डालने वाली लग सकती है परन्तु जो शिवसेना के अतीत से परिचित हैं उनके लिए महाराष्ट्र में शिवसेना और कांग्रेस का साथ आना कोई आश्चर्य की बात नहीं।

महाराष्ट्र की राजनीति में कई बार ऐसे मौके आए जब शिवसेना ने औपचारिक और अनौपचारिक रूप से कांग्रेस के साथ कई बार गठबंधन किया। राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देना हो या फिर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपने उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारना या फिर वैचारिक रूप से अलग मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करना, सत्ता प्राप्ति व स्वार्थ सिद्धि के लिए शिवसेना ने बेहिचक दूसरी पार्टियों का सहारा लिया है।

कांग्रेस-शिवसेना का सम्बन्ध बहुत पुराना है। वस्तुतः शिवसेना का जन्म ही कांग्रेस कि देन है।

मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन

शिवसेना जो अपनी तथाकथित विचारधारा और मुसलमानों के विरुद्ध ज्वलनशील बयान देने के लिए जानी जाती थी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन कर चुकी है। बात 1989 की है जब बाल ठाकरे ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के साथ गठबंधन किया था।

मुस्लिम लीग के नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला बाल ठाकरे के प्रबल आलोचक थे। इसके वावजूद भी शिवसेना ने 1970 में सत्ता पाने और मेयर बनाए जाने के लिए मुस्लिम लीग से गठबंधन कर लिया था।

स्वयं को हिंदू हृदय सम्राट का चोगा पहनाने वाले बाल ठाकरे ने बनातवाला के साथ मंच भी साझा किया था। 1978 में ठाकरे ने मुंबई स्थित नागपाड़ा के मस्तान तलाव मैदान में मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ रैली की और इलाके के मुसलमानों को संबोधित किया।

शिवसेना और मुस्लिम लीग दोनों ही दलों का राजनीतिक भविष्य अधर में लटका था और दोनों को ही एक दूसरे की आवश्यकता थी इसलिए दोनों ने हाथ मिलाकर राजनीतिक लाभ लिया।

कांग्रेस नेता वसंतराव नाईक का था समर्थन, कहलाती थी वसंत सेना

बाल ठाकरे ने शिवसेना नाम से पार्टी बनाई थी और उनको महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक का समर्थन प्राप्त था, जिस कारण से शिवसेना को वसंत सेना कहा जाने लगा।

वैभव पुरंदरे की किताब ‘बाल ठाकरे एंड द राइज ऑफ शिवसेना’ में लिखा है कि शिवसेना की पहली चुनावी रैली में उस समय के दिग्गज कांग्रेस नेता जैसे रामाराव अदिक भी सम्मिलित हुए थे।

1961 में शिवसेना ने अपना पहला चुनाव के कामराज की कांग्रेस सिंडिकेट के साथ मिलकर लड़ा था। हालांकि, बाद में इंदिरा वाली कांग्रेस का गुट ही कांग्रेस के रूप में अस्तित्व में आया।

देश में आपातकाल का किया समर्थन

‘बाल ठाकरे एंड द राइज ऑफ शिवसेना’ में लिखा है कि बाल ठाकरे ही ऐसे नेता थे, जिन्होंने खुलकर आपातकाल (इमरजेंसी) का समर्थन किया था। ठाकरे तो यह तक कहते थे कि मैं लोकशाही नहीं, बल्कि ठोकशाही पर विश्वास करता हूं।थॉमस हेनसेन की लिखी किताब ‘वेजेस ऑफ वायलेंस : नेमिंग एंड आइडेंटिटी इन पोस्टकोलोनियल बॉम्बे’ के अनुसार, ठाकरे ने आपातकाल का समर्थन करते हुए कहा था कि इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल इसलिए लगाया, क्योंकि देश में फैली अस्थिरता से निपटने का यही एकमात्र उपाय है।

कई चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन एवं प्रचार

वैभव पुरंदरे की किताब के अनुसार, 1977 में बाल ठाकरे ने बीएमसी चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार मुरली देवड़ा का समर्थन किया था।

उसी वर्ष हुए आम चुनाव में शिवसैनिकों ने कांग्रेस का प्रचार किया था।

1980 में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनते ही महाराष्ट्र की सरकार को निलंबित कर दिया और यहां पुन: चुनाव कराए। इन चुनावों में कांग्रेस ने वर्तमान्दुल रहमान अंतुले को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था। ठाकरे ने चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और कांग्रेस का समर्थन किया।

राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के भैरो सिंह शेखावत के विरुद्ध मतदान

शिवसेना और कांग्रेस की दोस्ती राष्ट्रपति चुनाव में भी साथ दिख चुकी है। 2007 में शिवसेना ने एनडीए समर्थित भैरो सिंह शेखावत की जगह यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया। इसी तरह से 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना ने यूपीए के प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद प्रणब मुखर्जी बाल ठाकरे से मिलने उनके घर मातोश्री भी गए थे जिससे सोनिया गाँधी प्रणब से गुस्सा भी हुई।

शरद पवार को कहा दुष्ट व्यक्ति पर दिया चुनावी समर्थन

1999 में एक टेलीविज़न चैनल को दिए साक्षात्कार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर बाल ठाकरे ने कहा था कि मैं कैसे किसी स्काउंड्रल (दुष्ट) के साथ जा सकता हूं। मैं किसी भी दुष्ट व्यक्ति के साथ नहीं जा सकता, चाहे वो जो भी हो। एक आदमी जिसका हाथ वाजपेयी जी की सरकार गिराने में रहा हो मैं उसके साथ हाथ कैसे मिला सकता हूं? दुश्मन तो दुश्मन ही होता है।

बाल ठाकरे ने पवार की बेटी सुप्रिया सुले के विरुद्ध अपना उम्मीदवार भी नहीं उतारा था। दरअसल, सितंबर 2006 में शरद पवार की बेटी सुप्रिया ने राज्यसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की। शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘ऑन माई टर्म्स’ में लिखा है- बाल ठाकरे ने उन्हें फोन किया और बोले “मैं सुन रहा हूं कि सुप्रिया चुनाव लड़ने जा रही है और आपने मुझे बताया नहीं। मुझे यह खबर दूसरों से क्यों मिल रही है?” इस पर पवार ने उनसे कहा “शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने पहले ही उसके (सुप्रिया) विरुद्ध अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है”।

इसके बाद ठाकरे ने उनसे कहा “मेरा कोई भी उम्मीदवार सुप्रिया के विरुद्ध नहीं लड़ेगा।”

जब पवार ने पूछा – “भाजपा का क्या करेंगे?” ठाकरे ने उत्तर दिया- “कमलाबाई (भाजपा) की चिंता मत करो। वो वही करेगी, जो मैं कहूंगा।”

इंदिरा गांधी की मृत्यु के पश्चात जब नहीं मिली कांग्रेसी तरजीह तो उग्र हिन्दुत्ववादी की छवि बनाई

शिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 80 के दशक में इंदिरा गांधी के अकस्मात् मृत्यु के बाद समाप्त हो गए। राजीव गांधी और फिर उसके बाद सोनिया गांधी ने ठाकरे परिवार को कोई तरजीह नहीं दी और यह संबंध खराब होते ही चले गए।

इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी राजनीतिक चेहरे के रूप में उभर रही थी और उसे जनसमर्थन मिलना प्रारंभ हो गया था। सुषुप्त हिन्दू भावनाओं को जागृत करने में भाजपा का प्रयास सफल सिद्ध हो रहा था। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए शिवसेना ने इसे एक अच्छा वैकल्पिक व वैचारिक मुद्दा समझा और उग्र हिंदुत्ववादी पार्टी की छवि बनाई जिससे वह भाजपा के करीब आ गई। स्थानीय राजनीती और लोगों पर अपनी पकड़ सुदृढ़ करने के लिए मराठी बनाम गैर मराठी मुद्दों को भी उछाला और राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए जीवंत रखा।

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