सत्ता के बदलते ही पांच राज्यों में 6 लाख 70 हजार करोड़ के कार्य भी विघ्न गए हैं। आंध्र प्रदेश में 1.09 लाख करोड़ रुपए में बनने वाली राजधानी अमरावती में बीते 6 महीने से कार्य रुका है। महाराष्ट्र में 5.46 लाख करोड़ रुपए के 8 परियोजना की समीक्षा, मेट्रो कार शेड परियोजना रुक गया। छत्तीसगढ़ में नई सरकार ने 13 हजार करोड़ के कई कार्यों पर रोक लगा दी है। मध्य प्रदेश में 430 करोड़ का अनुदान पा चुकी जन अभियान परिषद बंद करने की तैयारी है। उत्तर प्रदेश में 1513 करोड़ के गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में भ्रष्टाचार की जांच चल रही है।
विजयवाड़ा शहर के बीचोंबीच बने प्रकाशम बैराज को पार करते ही गुंटूर जिले की सीमा आरम्न्भ हो जाती है। यहीं से आरम्न्भ हो जाता है आंध्र प्रदेश की प्रस्तावित नई राजधानी अमरावती का क्षेत्र। 217 वर्ग किलोमीटर और करीब 1.09 लाख करोड़ रुपए में राजधानी बननी है। विश्व की सबसे खूबसूरत और आधुनिक राजधानी के दावों के बीच मानो यहां छह माह से समय ठहर-सा गया है। रास्ते में जगह-जगह अधूरी सड़कें, बालू के ढेर, बाढ़ के जल को हटाने के लिए पड़े मोटे-मोटे पाइप, बेतरतीब पड़ी मशीनें और अधूरे निर्माण दिखाई देते हैं। 30 मई को जगनमोहन रेड्&zwnj डी की सरकार बनने के बाद से यहां करीब-करीब सभी निर्माण कार्य रुके हुए हैं। अक्टूबर 2015 से यहां युद्ध स्तर पर कार्य हो रहा था। सत्ता में आने के एक सप्ताह के अंदर ही जगन सरकार ने परियोजना पर रोक लगा दी। यहां सिर्फ उन्हीं परियोजना पर कार्य चल रहा है जिनका निर्माण कार्य 25 फीसदी से अधिक हो गया है।
अभी सरकार ने कैबिनेट की सब कमेटी और एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई है जो पूरे परियोजना की समीक्षा और जांच कर रही है। अभी राज्य के मंत्री पूरे भरोसे से यह तक भी नहीं कह रहे हैं कि अमरावती ही राजधानी होगी। इस बीच नई राजधानी के रूप में मंगलागिरि का नाम भी चर्चा में है। राजधानी को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। चंद्राबाबू नायडू राउंड टेबल मीटिंग और विधानसभा के बाहर प्रदर्शन कर लाेगों को नई राजधानी के फायदे बता रहे हैं। जगन सरकार इन साइड ट्रेडिंग और भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है। बावजूद इसके अधिकारी कहते हैं कि 2023-24 तक परियोजना पूरा हो जाएगा। जो हकीकत से बहुत दूर लगता है।
तुल्लूर में राजधानी परियोजना में भूमि दे चुके नाराज किसानों की सभा लेने के बाद प्रदेश के वित्त मंत्री और राजधानी पर बनी कैबिनेट सब कमेटी के प्रमुख बोग्गना राजेंद्रनाथ ने पत्रकार से बात की। वे कहते हैं कि नई राजधानी में निश्चित तौर पर इनसाइड ट्रेडिंग हुई है। पहले यह राजधानी क्षेत्र 391 वर्ग किलो मीटर के दायरे में बनना था, लेकिन फिर इसे घटा कर 217 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया। इसके बीच की भूमि चंद्राबाबू नायडू और टीडीपी के लोगों ने ली। यहां तक कि नोटिफिकेशन से पहले भूमि खरीद ली गई। महंगे किराए पर सरकार ने सरकारी दफ्तर लिए। ऊंचे दामों पर ठेके दिए। हम जांच कर रहे हैं।
शहरी विकास मंत्री बी। सत्यनारायण ने कहा कि के। रवींद्रन की अध्यक्षता में बनी विशेषज्ञ कमेटी जो सिफारिश करेगी उसी के अनुसार निर्णय लेंगे। नदी के किनारे वाली भूमि नायडू सरकार ने चयन की जो सुदृढ़ नहीं है। यहां कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 40 फीसदी तक अधिक आ रही है। चार-चार फसल वाली उपजाऊ भूमि पर राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया है। भ्रष्टाचार का आलम यह रहा कि 845 करोड़ रुपए सिर्फ परियोजना की कंसल्टेंसी फीस है, जिसमें से 321 करोड़ का भुगतान कंपनियों को कर दिया गया।
बी। सत्यनारायण आगे बताते हैं कि जब राज्य कलाग हुआ था तो 10 वर्ष के लिए हैदराबाद राजधानी दोनों राज्यों के लिए थी, बावजूद इसके सरकार ने अस्थायी विधानसभा, उच्च न्यायालय और सेक्रेट्रिएट बनाए। इन आरोपों का टीडीपी जोरदार तरीके से खंडन करती है और इन्हें राजनीति से प्रेरित बताती है। टीडीपी के प्रवक्ता के। पट्&zwnj टाबी राम कहते हैं कि राज्य के बीच में होने के कारण अमरावती का चयन किया गया था। सिर्फ 60 दिन के अंदर ही किसानों से भूमि ली गई, वह भी बिना एक भी पैसा व्यय किए। चंद्राबाबू नायडू नई राजधानी का श्रेय न ले लें इसलिए जगन मोहन रेड्&zwnj डी ने परियोजना रोका है। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की छवि खराब हो रही है। कृषिभूमि कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, कुल राज्य की एक फीसदी कृषि भूमि ही राजधानी क्षेत्र में हैं। किसानों ने स्वेच्छा से भूमि दी है।
राजधानी परियोजना के कार्य रुकने से सबसे अधिक चिंतित यहां के बिल्डर हैं। क्रेडाई आंध्र प्रदेश के चेयरमैन ए। शिव रेड्&zwnj डी ने कहा कि बार-बार निर्णय बदलना सही नहीं है। यदि अनियमितता हुई है तो उसे ठीक करना चाहिए। लेकिन स्थान बदलना सही नहीं है। बीते छह माह में यहां भूमि के रेट 25 हजार रुपए प्रति वर्ग गज से घटकर 15 हजार रुपए प्रति वर्ग गज आ गए हैं। हमारे प्रतिनिधि मंडल ने कई बार सरकार से मिलकर बात की, लेकिन अभी तक किसी भी निर्णय पर सरकार पहुची दिखाई नहीं देती है।
आंध्र प्रदेश कैपिटल रीजन डवलपमेंट अथॉरिटी (एपीसीआरडीए) के कमिश्नर डॉ। पी। लक्ष्मी नरसिम्हम ने पत्रकार को बताया कि किसानों को 30 फीसदी भूमि विकसित करके देंगे, जिसमें 1200 कि.मी। लंबी सड़क, बिजली, पानी, ड्रेनेज, गैस, इंटरनेट की सुविधाएं दी जाएंगी। 1,575 एकड़ भूमि पर अमरावती सिटी कॉम्प्लेक्स बनाया जाएगा। जिसमें उच्च न्यायालय, विधानसभा, सेक्रेट्रिएट, मंत्री, विधायक, जज, आईएएस और कर्मचारियों के लिए कॉम्प्लेक्स बनाए जाएंगे। यहां अंडर ग्राउंड ड्रेनेज, सोलर लाइट, पानी, केबिल के जरिए बिजली सप्लाई, साइकिल व पैदल ट्रैक, ग्रीन स्पैस आदि डवलप करेंगे जिस पर करीब 53 से 54 हजार करोड़ रुपए का व्यय आएगा। वहीं दूसरी ओर 184 किलो मीटर लंबी वाह्य रिंग रोड, 94 किलोमीटर लंबी रिंग रोड़ सहित कृष्णा नदी के रखरखाव और सुंदरता आदि किया जाएगा। नरसिम्हम ने कहा कि अभी तक हमारे पास किसी प्रकार की कोई अधिकृत राजधानी कैंसिल होने का आदेश नहीं है। हमने वर्ष 2023-24 तक राजधानी परियोजना को पूरा करने का खाका तैयार किया है। मंगलगिरि में एम्स जैसे चिकित्सालय के लिए एग्रीमेंट भी हुए हैं। राजधानी क्षेत्र में चार 12 लेन की सड़कों सहित विश्व स्तरीय सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।
एपीसीआरडीए कमिश्नर डॉ। पी। लक्ष्मी नरसिम्हम के अनुसार परियोजना के लिए करीब 30 हजार किसानों से 34,500 एकड़ भूमि लैंडपूल के जरिए ली गई। यहां 15 फाइव स्टार होटल, तीन यूनिवर्सिटी, 12 स्कूल सहित विश्व स्तरीय राजधानी बननी है।
- अस्थायी विधानसभा, उच्च न्यायालय और सेक्रेट्रिएट का निर्माण हो चुका है। राज्य सरकार के सभी कार्य यहां हो रहे हैं। स्थाई उच्च न्यायालय बनने के बाद अस्थायी उच्च न्यायालय जिला न्यायालय बन जाएगा। 18.27 किमी लंबी चार लेन वाली सड़क ही बन सकी है।
- 94 किमी के रिंग रोड और 184 किमी के वाह्य रिंग रोड का कार्य कागजों में ही। स्थायी उच्च न्यायालय, सेक्रेट्रिएट, विधानसभा के निर्माण का कार्य नींव से आगे नहीं बढ़ा। 30 हजार किसानों को भूमि के बदले डेवलप्ड प्लाॅट का अधिकतर कार्य भी आरम्न्भ नहीं हुआ।
- 175 विधायकों, नॉन गजेटेड कार्यालायर्स के आवास निर्माण का कार्य 80% हो गया है। मंत्रियों, जजों और अधिकारियों के बंगलों की दीवारें और छत बन गई है।
- सिंगापुर कंसोर्टियम का 1,691 एकड़ भूमि पर बनने वाला कैपिटल सिटी स्टार्ट-अप परियोजना निरस्त। 30 करोड़ डॉलर वाली योजना से वर्ल्ड बैंक ने भी हाथ खींचे।
- 5600 करोड़ रुपए से अधिक अब तक परियोजना पर व्यय हुए, 42 हजार करोड़ रु। के एग्रीमेंट हुए
- 217 वर्ग किमी क्षेत्र में बननी है राजधानी। यहां भूमि की मूल्य 25 हजार से घटकर 15 हजार प्रति वर्ग गज हो गई है।
महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही लगभग 5 लाख 46 हजार 128 करोड़ रुपए के बड़े प्रोजेक्टों की समीक्षा आरम्न्भ हो गई है। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभालते ही सबसे पहले विवादित मुंबई मेट्रो-3 कार शेड के निर्माण पर रोक लगाई है। इस कार शेड के निर्माण पर कुल संभावित व्यय 328 करोड़ रुपए होने वाले थे। यह मेट्रो लाइन मुंबई के ऐसे इलाकों को जोड़ रही है, जहां फिलहाल कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है।
रमन सरकार की स्काई योजना पर नई सरकार ने रोक लगाई। 1473 करोड़ की योजना के अंतर्गत 55 लाख परिवारों की महिलाओं व विद्यार्थियों को स्मार्ट फोन देना था। रायपुर में 48 करोड़ की लागत से बन रहे स्काई वॉक पर भी रोक लगा दी गई है। इस पर 35 करोड़ व्यय हो चुके हैं। बलौदाबाजार जिले के सोना खान की लीज पर रोक लगाई गई है। वेदांता को 600 करोड़ में माइनिंग लीज दी गई थी। इसकी जांच के निर्देश दिए गए हैं। इसी तरह डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड से प्रदेशभर में 2000 करोड़ रुपए के इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कार्य पर रोक लगा दी गई है। 9005 करोड़ लागत की रेल परियोजनाओं की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।
मध्य प्रदेश में अब जन अभियान परिषद बंद करने की प्रक्रिया चल रही है। यहां की जांच में कई वित्तीय अनियमितताएं मिली थीं। जांच रिपोर्ट के अनुसार 2005-06 से 2018-19 तक परिषद को 430 करोड़ रुपए का अनुदान मिला। इस पर प्रश्न उठे। परिषद ने स्वयं सेवी संस्थाओं को नवांकुर योजना के अंतर्गत मात्र 33 करोड़ रुपए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई। स्थापना व्यय पर ही 155 करोड़ रुपए व्यय किए।
गोमती रिवर फ्रंट योजना का शिलान्यास अखिलेश यादव ने अप्रैल 2015 में किया था। इस मौके पर परियोजना के लिए 656 करोड़ भी मंजूर किए गए थे। इसे मार्च 2017 तक पूरा होना था। इस परियोजना में 12.1 किलोमीटर का रिवरफ्रंट बनाना था। इस पूरे परियोजना की लागत 1513 करोड़ रुपए थी। इस रिवर फ्रंट का सौन्दर्यीकरण सिर्फ अभी डेढ़ किमी में ही हुआ है। जबकि 1437 करोड़ व्यय हो चुके हैं और अभी भी यह पूरा नहीं है। अधिकारीयों ने इस योजना को पूरा करने के लिए 2448 करोड़ रूपए की आवश्यकता बताई है। 26 मार्च को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अखिलेश के ड्रीम परियोजना गोमती रिवर फ्रंट को देखने पहुंचे थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने फव्वारे में गंदा जल देखा उनका पारा चढ़ गया और उन्होंने इंजीनियर्स से हिसाब लेना आरम्न्भ कर दिया। हेर-फेर की आशंका के चलते योगी सरकार ने 1 अप्रैल को रिवर फ्रंट परियोजना की जांच का आदेश दे दिया था। 8 अधिकारीयों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था। अब यूपी सरकार ने 20 जुलाई को सीबीआई जांच की सिफारिश की है। अभी सीबीआई जांच आरम्न्भ नहीं हुई है।