राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार को अंतर्राष्ट्रीय ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस (आईजेसी) में पहुंचे। उन्होंने लैंगिक समानता प्राप्त करने में न्यायपालिका की कोशिशों की प्रशंसा की। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा- बड़े मामलों में उच्चतम न्यायालय के फैसलों से न सिर्फ कानून का राज स्थापित हुआ, बल्कि देश के संवैधानिक ढांचे को भी मजबूती मिली है। वहीं, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा- उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का कार्य केवल यह देखना नहीं है कि शक्ति किसके पास है, बल्कि हमारा लक्ष्य शोषित लोगों को सशक्त बनाना है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा- उच्चतम न्यायालय देश में सामाजिक परिवर्तन का अगुआ है। उच्चतम न्यायालय ने दो दशक पहले कार्य स्थल पर यौन शोषण रोकने से लेकर इसी महीने सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने तक कई महत्वपूर्ण आदेश सुनाए। इस तरह के आदेश भारत में सामाजिक परिवर्तन का संदेश देते हैं।
चीफ न्यायाधीश बोबडे ने कहा- निर्णय समय विश्व के सभी जज सबको न्याय देने की प्रतिज्ञा से बंधे होते हैं। हमारे सामने आए एक केस में हमने निर्णय दिया कि वर्तमान पीढ़ी को अगली और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ और सुरक्षा से खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। भारतीय उच्चतम न्यायालय के फैसलों को दुनियाभर की अदालतों में मिसाल के तौर पर लिया गया है। स्वतंत्र और विकसित देशों के बीच भारत ' उम्मीद की किरण' बनकर उभरा है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा- विवाद समाप्त करने के लिए समानांतर प्रक्रिया की तरफ बढ़ने से अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम होगा। मध्यस्थता और समझाइश से लंबी कानूनी प्रक्रिया के बनिस्पत समस्या को प्रभावी तरीके से सुलझाया जा सकता है। उन्होंने कहा- भारत में अदालतें नई तकनीक अपना रही हैं। न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अदालतें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का प्रयोग भी कर रही हैं।
चीफ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति की मंशा के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसलों को 9 क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने की शुरुआत कर दी है। इससे निर्धन और वंचित लोगों की न्याय प्रक्रिया तक पहुंच आसान होगी।