दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को प्राथमिकी (एफआईआर) में उर्दू या फारसी शब्दों के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए पुलिस को निर्देश दिया था। इस पर कार्यान्वयन हुआ या नहीं। यह पता लगाने के लिए न्यायालय नेअगली सुनवाई तक पुलिस सेप ्राथमिकी(एफआईआर) की 100 प्रतिया मंगाई थी। साथ ही इस मामले में शपथपत्र दाखिल करने को कहा है। अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश हरि शंकर की पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा कि, प्राथमिकी सरल भाषा में दर्ज की जाए। इसमें उर्दू और फारसी के शब्दों का प्रयोग न हो। ताकि साधारण जनता इसे आसानी से समझ सके।
न्यायालय ने कहा कि पुलिस साधारण आदमी का काम करने के लिए है, सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है, जिनके पास उर्दू या फारसी में डॉक्टरेट की डिग्री है। पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा, ऐसे शब्द जिनका अर्थ शब्दकोश में ढूंढना पड़े, का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एफआईआर शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए। भारी भरकम शब्द की जगह आसान भाषा का प्रयोग होना चाहिए। लोगों को ये पता होना चाहिए कि क्या लिखा गया है।
उच्च न्यायालय का ये निर्देश एक वकील द्वारा लगाई गई जनहित याचिका (पीआईएल) पर आया। इसमें न्यायालय से अनुरोध किया गया था कि वह दिल्ली पुलिस को उर्दू या फारसी शब्दों का प्रयोग बंद करने का निर्देश दे।इस संबंध में बीस नवंबर को पुलिस ने सभी थानों को एक सर्कुलर भेजा था। इसमें स्पष्ट बताया गया है कि प्राथमिकी दर्ज करते समय इन भाषाओं के बनिस्पत आसान शब्दों का प्रयोग किया जाए।
पुलिस ने न्यायालय को उर्दू और फारसी के ऐसे 383 शब्दों की सूची सौंपी है। जिनका थानों में प्रयोग बंद हो चुका है। जानकारी सही है या नहीं, ये पता लगाने के लिए न्यायालय ने अलग-अलग थानों से 10-10 एफआईआर की प्रतियां मंगाई थी।